संयुक्त राष्ट्र संघ से संबद्ध विश्व स्वास्थ संगठन जिसकी स्थापना 7 अप्रैल 1948 में हुई थी। जिसका मुख्यालय जिनेवा में तथा महानिदेशक टेडास अधानोम गेबरियासिस हैं। जिसके सदस्य देशों की संख्या 194 है। वास्तव में इस संस्था की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी यह है कि दुनिया के देशों के स्वास्थ्य की चिंता करें तथा चिकित्सा स्वास्थ्य संबंधी शोध व जानकारी को सभी देशों तक पहुंचाएं यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह स्वास्थ्य संबंधी किसी भी खतरे से समय रहते दुनिया को सावधान/सचेत कर दे। खतरे की जानकारी दें।
अब तक कोरोना संक्रमितों की संख्या का अवलोकन किया जाए तो दुनिया के लगभग 20 लाख संक्रमितों में सबसे अधिक 614000 केवल अमेरिका में है। मरने वालों में दुनिया के 126000 में केवल 26 हजार से अधिक अमेरिका के ही हैं। ऐसे में अमेरिका का आक्रोश कब किस रूप में सामने आएगा, अनुमान लगाया जा सकता है? संगठन में सर्वाधिक अंशदान अमेरिका और चीन का है। इसमें पूरे विश्व का अंशदान का 22% हिस्सा अकेला अमेरिका का है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर जो सवाल उठाए जा रहे हैं।
कुछ इस प्रकार है
सर्वप्रथम तो यह कि 17 नवंबर को प्रथम कोरोना संक्रमित व्यक्ति चीन में ही पाया गया। तब से 15 दिसंबर तक बुहान शहर में सैकड़ों तथा 27 दिसंबर तक हजारों लोग संक्रमित हो गए थे। मरने वालों की संख्या 180 से ज्यादा हो गया था। लेकिन चीन ने ना अपने फ्लाइट्स बंद किए थे ना डब्ल्यूएचओ को सूचित ही करना मुनासिब समझा, जबकि इस तरह की महामारी (संक्रमण ) की सूचना 24 घंटे के अंदर ना दिया जाना विश्व स्वास्थ्य संगठन के ऑर्डिनेंस का उल्लंघन है। 31 दिसंबर को चीन द्वारा तब सूचित किया गया जब अधिकांश देशों में यह संक्रमण फैल चुका था। पड़ोसी देश भी संक्रमण की सूचना विश्व को दीया।
द्वितीय यह कि 14 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन यह बयान देकर आश्चर्य में डाल दिया कि यह बीमारी इंसान से इंसान में नहीं फैलती, साथ ही यह भी कहा कि यह नया वायरस नहीं है बल्कि बायोलॉजिकल वेपंस (जैविक हथियार) है। इतना ही नहीं जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह यह कि अमेरिका सहित कई देश संक्रमण के शिकार हो चुके थे, तब जनवरी के अंत में डब्ल्यूएचओ ने इसे महामारी घोषित किया।
तृतीय सवाल जो मानवाधिकार से भी जुड़ा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के उन महत्वपूर्ण डॉक्टरों और शोधकर्ताओं का भी साथ नहीं दिया जिन्होंने सबसे पहले इस वायरस के संबंध में चेतावनी दी थी यहां तक कि इन्हें चीन द्वारा दंडित किया गया इस पर भी संगठन ने चुप्पी साधे रखी अमेरिका का यह भी आरोप है कि कोरोना वायरस संक्रमण में संगठन हमेशा चीन का साथ देता रहा है।
उक्त सवाल संस्था के नेतृत्व ही नहीं बल्कि पूरे संगठन के भविष्य को दांव पर लगा दिया है। जबकि अमेरिका द्वारा चीन के वुहान स्थित उस बायरोलॉजी लैब (प्रयोगशाला) को दी जाने वाली सहायता राशि जो 10 वर्षों में लगभग 3.7 मिलियन डालर की बात सामने आई है। जिसको लेकर दुनिया के देशों की जिज्ञासा बढ़ना स्वाभाविक है कि इतने दिनों से इतनी बड़ी धनराशि इस घातक जानलेवा प्रयोगशाला को अमेरिका द्वारा क्यों दिया जाता रहा है? क्या विश्व की महाशक्तियां इसी तरह की बीमारी संक्रमण फैलाकर उसके इलाज के नाम पर अरबों खरबों की कमाई करके मालामाल होती रहेंगी? अविकसित- विकासशील देश मुकदर्शक होकर देखते रहेंगे? भारत एक ऐसा देश है जो अपना अंशदान केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ से संबंधित सभी संस्थाओं को बिना विलंब किए सही समय पर भुगतान करता रहता है। तटस्थ भारत की भूमिका ऐसे संकट पूर्ण समय में महत्वपूर्ण हो जाती है। विकासशील तथा अविकसित देशों की आवाज बनकर भारतीय नेतृत्व की सफल भूमिका की प्रतीक्षा पूरे विश्व को है। विश्वास है “हम होंगे कामयाब एक दिन” “जय हिंद -जय विश्व”
डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला, विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजा श्री कृष्ण दत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
संपर्क:- 9451336363