राजभाषा का दर्जा पाने के इंतजार में भोजपुरी

राजभाषा का दर्जा पाने के इंतजार में भोजपुरी

भोजपुरी की बदौलत पूरी दुनिया प्रसिद्ध हासिल करने वाले सितारे भी है मौन
भोजपुरी भाषा को आठवी सूची में दर्ज कराने के लिये हर संघठन को आना होगा आगे
विनोद कुमार
भारत विभिन्न वेषभूषा, संस्कृति, रहन-सहन और बोली—भाषा वाला देश है। देश के अलग अलग क्षेत्रों में बोली जानी वाली भाषाओं का अपना ही आत्मीय महत्त्व है। क्षेत्रीय भाषा के आधार पर बात-विचार-व्यवहार भी निर्धारित किया जाता है। भारत में बोली जाने वाली भाषाओं में जो मिठास है, वह दुनिया में अन्यत्र कहीं भी नहीं है। भाषाएं भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र बिंदु रहीं हैं।

इन्हीं भाषाओं के बीच पूर्वोत्तर भारत में बोली जाने वाली एक समृद्ध भाषा भोजपुरी भी है जो भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपना एक अहम स्थान रखती है। मगर हर बार भोजपुरी भाषा का दरकिनार किया गया। हैरानी की बात यह है कि देश के सबसे बड़े हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश जहां भोजपुरी भाषा का भी बोलबाला है।‌ यहां के तीन मूल निवासी रविकिशन (गोरखपुर), दिनेश लाल (आजमगढ़) और मनोज तिवारी (दिल्ली) संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं लेकिन भोजपुरी भाषा के मुद्दे पर एक शब्द भी बोलने को राजी नहीं हैं जबकि ये तीनों सांसद भोजपुरी भाषा की ही बदौलत आज देश की सर्वोच्च संस्था में शामिल हैं। भोजपुरी भाषा को समृद्धशाली बनाने की जिम्मेवारी सड़क से लेकर संसद उनकी जिम्मेदार बनती है। इसी भाषा की बदौलत भोजपुरी सितारे दुनिया भर में अपनी उपस्थिति दर्ज करते हुए ख्याति अर्जित की कर मान-सम्मान, यश, कीर्ति प्राप्त की है। भोजपुरी के अन्य सितारों को भी भोजपुरी भाषा को समृद्धशाली बनाने के लिए आगे आएं और इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए आगे आकर अपनी आवाज बुलंद करें। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने पर भोजपुरी भाषा लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) सहित अन्य अन्य केंद्रीय परीक्षाओं परीक्षा देने का माध्यम बन जाएगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे भोजपुरी भाषा बाहुल्य राज्यों में यह भाषा शैक्षणिक माध्यम और सरकारी कामकाज की भाषा तथा लोकसभा और विधानसभा में प्रश्न पूछने या भाषण देने का माध्यम भी बन जाएगी।

उम्मीद की जानी चाहिए कि भोजपुरी भाषा के सहारे सफलता का परचम लहराने वाले हमारे सांसद, विधायक और देश के विभिन्न भाषा संघर्ष समिति के पदाधिकारी भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए आगे बढ़कर अपनी आवाज बुलंद करेंगे और सरकार के सामने अपना पक्ष रखते हुए भोजपुरी को उसका सम्मान दिलाने में अपना योगदान देंगे।
वहीं डोभी निवासी आरसी यादव प्रसिद्ध कवि के साथ दिल्ली में शिक्षक पद पर कार्यरत है, का कहना है कि विदेश मंत्रालय के 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में भोजपुरी बोलने वालों की संख्या 28.50 लाख है जबकि ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (ORGI) के एक “ऐब्स्ट्रैक्ट ऑफ स्पीकर्स स्ट्रैंथ ऑफ लेंग्वेज एण्ड मदर टंग” के आंकड़े के अनुसार देश-विदेश में 33,099,497 लोगों ने अपनी मातृभाषा भोजपुरी बताया है। 26 नवंबर 1949 को संविधान की आठवीं अनुसूचि में हिंदी, तेलुगु, बंगाली, मराठी, तमिल, उर्दू, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, कश्मीरी, असमिया और संस्कृत समेत 14 भाषाओं को राजभाषा के रुप में शामिल किया गया था।

बाद में नेपाली, सिंधी और अवधि को जोड़ा गया। भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने के लिए सर्वप्रथम वर्ष 2009 में तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में उठाया था और यह दावा किया था की नेपाली, सिंधी और अवधि भाषाओं की तरह भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए सभी आवश्यक योग्यताएं हैं। 28 अप्रैल 2016 को एक बार सांसद योगी आदित्यनाथ ने भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने का मुद्दा लोकसभा में उठाया और आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया कि भोजपुरी दुनिया की सबसे बड़ी उप-भाषा (बोली) जिसे 16 करोड़ लोग भारत में सिर्फ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और विश्व के 27 अन्य देशों में भी बोलते हैं। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने वर्ष 2013 में कहा कि भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने पर भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा लेकिन 9 वर्ष बाद भी ऐसा नहीं हुआ।

पूर्व सीआरपीएफ जवान सुधीर सिंह जो अपनी संस्था शहीद संजय फाउंडेशन के तहत गरीब व असहाय लोगो की मदद कर रहे हैं, का कहना है कि गृह मंत्रालय की दो समितियों पाहवा (1996) और सीताकांत मोहपात्रा (2003) के द्वारा भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए मापदंड निर्धारित करने को कहा गया था जो कि अनिर्णायक रहा। इतने संघर्षों के बाद भी भोजपुरी को राजभाषा का दर्जा आज तक नहीं मिल पाया है। भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने के लिए समय समय पर मांग होती रही है। संवैधानिक रूप में किसी भी भाषा को राजभाषा का दर्जा तभी मिल सकता है जब उसे संविधान की आठवीं सूची में शामिल किया गया हो। समाजसेवी अजीत सिंह ने कहा कि भोजपुरी 38 भाषाओं में से एक है जिसे आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग संसद में और दूसरे मंचों पर लगातार उठती रही है। विडंबना देखिए कि जो प्रदेश देश को स्व. जवाहर लाल नेहरु से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में भेजकर देश का प्रधानमंत्री बनाया। बाबजूद इसके भी भोजपुरी भाषा को आठवी सूची में शामिल न होना प्रदेश के लिए दुर्भाग्य की बात है। हम सभी को एक होकर सड़क से लेकर संसद पर भोजपुरी के सम्मान के उतरना पड़ेगा।

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