कागजों में दफन होकर रह गयीं शासन की योजनाएं
गोविन्द वर्मा
बाराबंकी। भ्रष्ट नौकरशाही के चलते चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं पशु पलकों के लिए हवा हवाई साबित हो रही हैं। ग्रामीण इलाकों में पशु पालकों को आसानी से चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की नीयत से लाखों रुपए खर्च कर खोले गए पशु सेवा केंद्र अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। पशु चिकित्सालयों पर तैनात डाक्टर की कौन कहे, चपरासी तक अपने तैनाती स्थल पर रूकने के बजाय लखनऊ से आते जाते हैं। बेलगाम हो रही नौकरशाही पर नियंत्रण पाने के लिए जिले में तैनात मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी अपने अधिनस्थों पर नियंत्रण पाने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रहे हैं। पशु चिकित्सालय में तैनात डाक्टर अपने तैनाती स्थल पर जाने के बजाय मुख्यालय पर अधिकारियों की जी हजूरी करना अपना फर्ज समझते हैं। कागजों पर योजनाओं का संचालन कर प्रदेश सरकार की लुटिया डुबोने में लगे भ्रष्ट नौकरशाहों पर मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी की मेहरबानी उनकी मिलीभगत की तरफ खुला इशारा करती नजर आ रही है।
मानव सम्पदा पोर्टल पर नहीं दर्ज हो रहीं छुट्टियां
प्रदेश सरकार द्वारा भ्रष्ट नौकरशाही पर लगाम लगाने के लिए वर्तमान वित्तीय वर्ष से शुरू किया गया मानव सम्पदा पोर्टल भी नाकाम साबित हो रहा है। पोर्टल लांच कर सरकार ने स्पष्ट कहा था कोई भी व्यक्ति जब छुट्टी लेना चाहेगा तो उसके द्वारा पोर्टल पर आनलाइन आवेदन किया जाएगा। तू डाल डाल तो मैं पात पात कहावत को चरितार्थ करते हुए भ्रष्ट नौकरशाही ने उसका लाजवाब तोड़ खोज निकाला। पुरानी कार्यशैली को बहाल रखते हुए छुट्टी पर जाने वाले व्यक्ति से अवकाश प्रार्थना पत्र तो लिखवाया जाता है परंतु उसे पोर्टल पर लोड नहीं किया जाता है। न तुम मेरी कहो, न हम तुम्हारी कहे की तर्ज पर छुट्टी से वापस लौटकर आने के बाद उसकी एप्लिकेशन को फाड़कर फेंकते हुए उसे प्रजेंट दिखा दिया जाता है। दो महीने से अधिक का समय बीतने के बाद भी जनपद में खुले 37 पशु चिकित्सालय एवं 66 पशु सेवा केंद्र पर तैनात 167 स्टाफ में से एक भी कर्मचारी का अवकाश पोर्टल पर लोड न होना भ्रष्ट नौकरशाही का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
तैनाती स्थल पर नहीं जाते डाक्टर
स्थानीय संवाद के अनुसार विकास खंड देवा क्षेत्र स्थित तिंदोला गांव में खुले पशु चिकित्सालय में तैनात डाक्टर का तो दर्शन ही दुर्लभ है। डाक्टर की तैनाती होने के बाद भी क्षेत्र के पशुओं का इलाज कंपाउंडर द्वारा शुरुआत से ही किया जा रहा है। मजेदार बात यह कि यहां पर तैनात चपरासी ने भी आज तक अस्पताल जाने की जहमत नहीं उठाई है। विकास खंड मसौली स्थित दादरा पशु चिकित्सालय में तैनात चपरासी ने भी आज तक अस्पताल जाना मुनासिब नहीं समझा है। विकास खंड हैदरगढ़ क्षेत्र स्थित कबूलपुर पशु चिकित्सालय, उधौली पशु चिकित्सालय, कोटवा धाम पशु चिकित्सालय व फतेहपुर पशु चिकित्सालय में तैनात डाक्टर तो अस्पताल जाने में अपनी तौहीन समझते हैं। इन सभी अस्पतालों में चिकित्सा का भार कंपाउंडर के कंधों पर टिका हुआ है। बात जब तैनाती स्थल पर न जाने की हो तो पशुधन प्रसार अधिकारी भला कैसे पीछे रह सकते हैं। विकास खंड बंकी के पशु सेवा केंद्र गदिया एवं विकास खंड देवा के पशु सेवा केंद्र कैथी सरैया में तैनात पशुधन प्रसार अधिकारी ने भी आज तक अपने तैनाती स्थल पर जाना मुनासिब नहीं समझा है। रोचक तथ्य यह कि अपने तैनाती स्थल पर न जाने वाले किसी भी कर्मचारी द्वारा पोर्टल पर अवकाश नहीं दर्ज कराया गया है।सेंटर पर तैनात स्टाफ द्वारा गैरहाजिर रहने वाले कर्मचारियों की हाजिरी लगाई जा रही है। इतना ही नहीं, विभागीय मुखिया के आशीर्वाद से केवल रजिस्टर में हाजिर रहने वाले सभी कर्मचारियों को नियमित रूप से वेतन भी मिल रहा है। इस सम्बंध में मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ जेएन पांडेय ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है। जांच कर सभी दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।
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