मंज़िल

मंज़िल

जिंदगी में कुछ बनने की लिए, बहुत कुछ करना पड़ता हैं।
जब दुनिया सो रही होती हैं तब हमे रातों के नींद से लड़ना पड़ता हैं।।
नींदों को समझाकर जागते आखों से सपने बुनना होता हैं।
ऐसे ही किसी को नही मिल जाती हैं मंजिले,
राह राह पे मुसीबतों से लड़ना पड़ता हैं,
चाहे हालात कैसे भी हो डट कर सामना करना होता है,
लोगों के तरह तरह के ताने भी सुनना पड़ता है,
आंखे भी भर आती हैं आंसू भी छुपाना पड़ता हैं,
जब कोई साथ नहीं होता है हमे साहस देने के लिए,
तो हमे खुद के लिए खड़ा भी होना पड़ता हैं,
हमें ज़िंदगी में सफ़ल होने के लिए,
हमें अपने लक्ष्य के प्रति जुनूनी बनना होता है।
हर एक काम को पूरा करने के लिए,
जी जान से मेहनत करना होता हैं,
रोकने वाले हज़ार मिलते हैं, फिर भी आगे बढ़ना होता हैं,
लोगो के रूढ़िवादी सोच को दूर कर,
छोटी छोटी सफलता और असफलता से सीख लेकर,
स्वयं को मजबूत और लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय करना होता हैं,
काफी संघर्षों के बाद जिंदगी में ये सफ़लता के दिन आता हैं,
खून पसीने से सीच कर अपने सपने को सच कर पाता हैं।
तब जाके एक मनुष्य सफल व्यक्ति कहलाता हैं।

मनीषा कुमारी
बीएड
एएम एसी गणित 2nd सेमेस्टर
मुंबई यूनिवर्सिटी

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