ज्ञान सुधा-भाग (४९)
तुलसी-जीवन वृत्त
तुलसी कबीर सूर संत रसखान भयो
मीराबाई सम गुन गायो घनश्याम को।
सगुन साकार व्रह्म प्रभु जो रहित गुन
तजि मद मान गुन गायो हरि नाम को।।
गही प्रतिबिम्ब भक्ति भीलनी निषादजू की
लीन्हो भक्ति दास्य सख्य प्रभू श्याम राम को।
धन्य भईं नियति मनुज तन दीन्हो प्रभु
नेह लग्यो ईश से बिहाइ जग काम को।।
होत न धर्म को ज्ञान यहां नर पातक पुञ्ज भये बहुतेरे।
शील दया न क्षमा नहिं बुद्धि न ज्ञान विवेक अपावन केरे।।
भ्रम वश नेह लग्यो जग नश्वर कण्टक जीवन काल घनेरे।
खेवनहार भयो तुलसी कलिकाल में मानस जीव उबेरे।।
कालनेमि सरिस संत कलि में असंख्य भयो
धर्म वेद बेंचि निज स्वार्थ सिद्धि कीन्हो हैं।
कंचुक संवारि रूप सज्जा सिंगार करें
गणिका सम वृत्ति लहि रूप पाश दीन्हो हैं।।
वंचना जगत की नियति हीं बनी है तासु
इहलोक वासना नसाइ जन्म लीन्हो है।
उत्तर प्रदेश भूमि पावन सुहावन में
बांदा जिला राजापुर गांव शोभिते तहां।।
पन्द्रह सौ अड़सठ श्रावण शुकल पक्ष
तिथि सप्तमी को जन्म लीन्हों तुलसी वहां।।
दन्त द्वय त्रिंश जन्मते हीं मुख राम कह्यो
राम बोला नाम भयो धन्य धरती जहां।।
मूल में जनम देखि त्यागि दीन्हो मातु पितु
भयो है अनाथ तब नाथ की कृपा तहां।।
मातु हुलसी ने सुत तुलसी समर्पि चेरी
चार दिन बाद बैकुण्ठ को सिधारी है।।
तीन दिन वय तुलसी को चेरी साथ लिये
चली ससुराल निज धन्य वह नारी है।।
पञ्च वर्ष षट माह चुनिया ने पाला उन्हें
मर गई चेरी कैसी भाग्य बलिहारी है।।
भाग्य को न मेटि सके दुख जो लिखा लिलार
माया रघुनाथ की जो विपति से भारी है।।
भयो है अनाथ बाल द्वार द्वार घूमै लागे
आयी दया मातु गौरी दीन्हो निज छांव है।
व्राह्मणी का रूप धरि शिवा नित बालक को
भोजन करावैं नित पुत्र सम भाव है।।
दया लागि महादेव दीन देखि बालक को
नरहर्यानन्द गुरू शरण तब दीन्हो हैं।।
यज्ञोपवित भयो माघ शुक्ल पंचमी को
गायत्री मन्त्र गाइ चकित सब कीन्हो हैं।।
….. क्रमशः ५० भाग में
रचनाकार— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि)
शिक्षक/पत्रकार
मो. ९९१८३५७९०८
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