मैंने पीएफआई क्यों छोड़ी?
मैंने पीएफआई क्यों छोड़ी?
2007 में मैंने केएफडी जो कर्नाटक में पीएफआई का पुराना नाम है ज्वाइन किया था और अक्टूबर 2008 तक मैं इसका हिस्सा रहा। मैंने कर्नाटक के सेंट्रल बेंगलुरु के शिवा जी नगर के पी एफ आई सेक्रेटरी पड़ पर काम किया है। मैंने लगभग डेढ़ से दो 2 सालों के दौरान यह देखा कि पीएफआई कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए काम करती है और बहुत सारे सूफी संप्रदाय के युवकों को कट्टरता की ओर ढकेलती है और मेरा मानना था कि सूफीवाद ही वह इकलौता रास्ता है जिससे इस्लाम की छवि सुधारी जा सकती है और कट्टरता को रोका जा सकता है।
मैंने उस समय के पी एफ आई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य मौलाना उस्मान बेग से जब यह बात कही कि हमारी टॉप लीडरशिप में सूफियों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है और कट्टरपंथी विचारधारा के लोग क्यों अधिक हैं उन्होंने उस समय इसका कोई जवाब नहीं दिया और कहा कि ज्यादातर सूफी संप्रदाय के लोग हमारे साथ जुड़ते नही है। फिर मैंने उन्हें कुछ नाम सुझाए जिन्हें मौलाना उस्मान बेग ने बिना सोचे समझे रिजेक्ट कर दिया।
इन डेढ़ से 2 साल के दौरान पीएफआई को मैंने बहुत नजदीक से देखा और यह मेरा मानना है पी एफ आई कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाली विचारधारा का समर्थन करता है जो यह सिखाता है कि जो भी काफिर है चाहे शिया हो, सुन्नी हो, सूफी हो या गैर मुस्लिम हो उसको मार देने में कोई हर्ज नहीं है और इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरूप है जबकि मैं दिल से सूफी संप्रदाय को मानने वाला था इसीलिए मेरी सूफी शिक्षाएं कभी भी किसी भी व्यक्ति को मारने के लिए अनुमति नहीं देती है ना किसी से नफरत करने के लिए। जब मैंने देखा पीएफआई सूफी विचारों को ना मानकर कट्टरपंथ के रास्ते पर चलेगी तो मैंने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को छोड़ दिया और अपना खुद का एक एनजीओ यूनाइटेड इंडिया सेकुलर फोरम के तहत सारे भारतीयों को एक साथ लेकर चलने के लिए काम करने लगा।
दौलत खानमहासचिव सूफी इस्लामिक बोर्ड कर्नाटक
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