कजरौटे से काजल निकाल,
अपने लाल के माथे पर,
काला गोल टीका लगाना…..
फिर खुद ही मंद-मंद मुस्काना,
उसको किसने सिखलाया….!
आज तलक कोई नहीं जान पाया….
शायद…. उसने लोगों से….
सुनी होगी… देशी कहावत….!
“काला लम्बा टीका मधुर सी वानी…”
दगाबाज की यही निशानी…..
मैं समझ सकता हूँ….
वह तो कभी नहीं चाहैगी… समाज मे,
अपने लाल को दगाबाज कहलाना
शायद यही कारण रहा होगा….!
उसे काला गोल टीका लगाना….
पर हमने तो सुना है…. कहावतें तो…
लोकानुभव का निष्कर्ष होती है…
इस कसौटी पर….!
जब समाज को कसता हूँ….
देश-दुनिया को परखता हूँ….
और जब आस-पास में देखता हूँ
जगह-जगह नारी-निकेतन,
विधवा आश्रम, वृद्धाश्रम की भरमार
फिर तो कष्ट होता है अपार
और…. मजबूर हो जाता हूँ….
यह सोचने पर कि….
उसकी दुआओं में तो….!
कमी नहीं रही होगी…. पर आज…
कपूतों ने अपने हाथ से ही….
उसके गोल काले टीके को….!
लम्बा कर लिया है…..
उसके गोल काले टीके को…!
लम्बा कर लिया है…..
रचनाकार——जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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