सुप्रीम कोर्ट में पटना हाईकोर्ट के फैसले पर चुनौती पर पक्ष रखते ही चक्रव्यूह में फंसी केन्द्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट में पटना हाईकोर्ट के फैसले पर चुनौती पर पक्ष रखते ही चक्रव्यूह में फंसी केन्द्र सरकार

ध्रुवचन्द्र जायसवाल
सुप्रीम कोर्ट में जातिगत जनगणना सर्वेक्षण के सम्बन्ध में पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अपना पक्ष रखने के सम्बन्ध में नोटिस जारी किया था। केन्द्र सरकार की ओर से 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार किसी के पक्ष की ओर से नहीं है लेकिन इसके परिणाम हो सकते हैं इसलिए केन्द्र सरकार अपना पक्ष रखना चाहती है। 28 अगस्त 2023 को हलफनामा दाखिल किया था। केन्द्र सरकार को हलफनामे में त्रुटि होने का एहसास होते ही सुप्रीम कोर्ट में दुसरा हलफनामे में परिवर्तन करना पड़ा जो सोशल मीडिया में वायरल हो गया है, उसका जिक्र करना जरूरी नहीं है। चैनलों पर चर्चा का होने शुरू हो गया है। स्मरण रहे कि बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भाजपा से गठबंधन तोड़कर तेजस्वी यादव से गठबंधन कर लिया। तेजस्वी यादव जी भी जाति-आधारित जनगणना कराने के लिए पहले से ही मांग करते आ रहे थे। जनगणना के सम्बन्ध पटना हाईकोर्ट में जातिगत जनगणना सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली छः याचिकाएं खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने फैसला सुनाया। फैसले के कुछ महत्वपूर्ण बातें— जनगणना कराना संसदका विशेषाधिकार है जिसके आधार पर संसद ने जनगणना अधिनियम तैयार किया है लेकिन राज्य सांख्यिकी संग्रह अधिनियम 2008 के तहत राज्य सरकार जाति सर्वेक्षण कर सकती है। फैसला 101 पन्नों में सुनाया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य में सरकार योजनाएं तैयार करने के लिए सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को ध्यान रखकर गणना करा सकती है। गणना व्यक्तिगत परिवार की होनी है। इससे उनकी जाति की पहचान करना सम्भव होता है। जातिगत पहचान पर आधारित वर्ग या समूह जो पिछड़े हैं, उनकी गणना करने से सरकारी योजनाओं का लाभ देना आसान होगा। कोर्ट का कहना है कि राज्य सरकार ने पिछड़ों के उत्थान विकासात्मक गतिविधियों को शुरू करने उसे क्रियान्वित करने के उद्देश्य से जनगणना करा रही है। पटना हाईकोर्ट का फैसला मिल का पत्थर साबित होता दिखाई देने लगा है तथा केन्द्र सरकार जातिगत जनगणना कराने के अपने वादे से मुकरने पर अब अपने ही चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी मुद्दे भष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता से बड़ा मुद्दा जाति-आधारित जनगणना होगी। एक बार पुनः जातीय आधारित जनगणना का मुद्दा गरमा गई है। चर्चा शुरू हो गई है कि केन्द्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना नहीं कराने से पिछड़ी जातियों में व्यापक स्तर पर जनाक्रोश तेजी से बढ़ता जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पिछड़ों, पिछड़े वैश्यों, दलितों, आदिवासियों का भविष्य तय होगा। भाजपा के रणनीतिकार देश की जनता की नब्ज नहीं पकड़ पा रहे है। केन्द्र सरकार के पास अभी मौका है।जातीय आधारित जनगणना के चक्रव्यूह से निकलने का एक मात्र रास्ता केन्द्र सरकार अपने वादे अनुसार जनगणना के साथ जातिगत गणना कराने का तत्काल आदेश जारी कर देना चाहिये।
(लेखक अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं)

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