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सूबे की जेलों व बाहर अपराधियों का राज तो कैसे थमे अपराध? | #TejasToday
कहीं सलाखों के पीछे वारदात तो कहीं बीच सड़क पर हो रहे
ए. अहमद सौदागर लखनऊ। 9 जुलाई 2018 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय समेत 40 से अधिक लोगों की हत्या के आरोपित मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह सनसनीखेज मामला उस स्थान पर हुआ जहां 24 घंटे गेट से लेकर भीतर तक तथा बाहर तक भारी संख्या में पुलिस बल तैनात होता। 8 जुलाई 2020 कानपुर नगर जिले के बिल्हौर थाना क्षेत्र स्थित बिकरू गांव निवासी दहशतगर्द विकास दुबे ने सीओ सहित 8 पुलिसकर्मियों के ऊपर गोलियों की बौछार कर मौत की नींद सुला दिया।
भले ही बाद में पुलिस अधिकारियों ने मुठभेड़ के दौरान खूंखार इनामी विकास दुबे का हमीरपुर के मौदहा क्षेत्र में अन्त कर दिया हो लेकिन कड़वा सच यही है कि अगर अफसर पहले चेत जाते तो शायद 8 पुलिसकर्मियों की जान नहीं जाती। खास बात यह है कि यूपी पुलिस के अधिकारियों की नींद उस समय टूटती हैं, जब अपराधी अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होकर भाग निकलते हैं। वर्ष 2013 में आजमगढ़ जिले के जीयनपुर कोतवाली से कुछ दूरी पर पूर्व विधायक सर्वेश सिंह उर्फ सिपू की गोली मारकर जान ले ली गई। 2011 में लखनऊ जिला जेल में सीएमओ डा. वाईएस सचान की संदिग्ध हालात में मौत। 1 दिसंबर 2017 को गोमतीनगर में बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी के करीबी तारिक की हत्या। 5 मार्च 2016 को मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह और उसके मित्र संजय मिश्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई। पूर्व और हाल में हुई घटनाओं से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बेखौफ माफियाओं और उनके गुर्गों राज सलाखों के पीछे से लेकर सड़क तक चल रहा है। गौर करें तो उत्तर प्रदेश की जेलों में रसूखदार बंदियों का सिक्का चल रहा है। यहां बन्द खूंखार अपराधी खुलेआम मोबाइल फोन से लेकर हर प्रतिबंध साधनों का प्रयोग कर रहे हैं। जेलकर्मी चाह कर भी उन पर पाबंदी नहीं लगा पाते। वजह जिसने भी रोक-टोक लगाई उसे इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ी।
कानपुर नगर में दहशतगर्द विकास दुबे के हाथों गई 8 पुलिसकर्मियों की जान और 6 जनवरी 2021 राजधानी लखनऊ के विभूतिखंड क्षेत्र स्थित कठौता चौराहे पर जनपद मऊ जिले के मोहम्मदाबाद गोहना निवासी पूर्व ब्लाक प्रमुख एवं हिस्ट्रीशीटर अजीत सिंह की हत्या इसका उदाहरण है। हालांकि ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। वर्ष 2007 में तो तीन हत्याएं हुईं। जेल में बंद अपराधियों और बाहर आजाद बनकर घूम रहे उनके शूटरों के आतंक पर नजर डालें तो मेरठ जेल के डिप्टी जेलर नरेन्द्र द्विवेदी, मुजफ्फरनगर जेल के हेड वार्डर देवदत्त शर्मा और गाजियाबाद जेल के हेड वार्डर रामेश्वर दयाल की हत्या ने उस समय जेलकर्मियों में खौफ पैदा कर दिया था। जेल के अंदर-बाहर पूर्व और हाल में हुई कई संगीन वारदातों के बाद से कई बार शासन-प्रशासन ने आतंक का पर्याय बने अपराधियों पर लगाम कसने रवैया अपनाया लेकिन थोड़े ही दिनों बाद सब कुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगा। नतीजतन अभी भी कभी बीच सड़क पर तो कभी सलाखों के पीछे से गैंगवार को लेकर घटनाएं होने का सिलसिला थम नहीं रहा है।
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