मां और मां की ममता
पुराने की जगह नए का आगमन
और उसकी स्वीकार्यता का ही
परिवर्तन नाम है….
चलो, माना कि परिवर्तन
सृष्टि का नियम है और
इसे स्वीकार भी करना चाहिए
पर,यह भी सच है कि
परिवर्तन से परे होती है,
माँ और माँ की ममता….!
जरा विचार करें….
क्या परिवर्तन संभव है….?
माँ की लोरिओं का,
बुरी नजर से बचाने वाले
उसके काजल के टीके का
या फिर दुनिया की नजरों से
छुपा लेने वाले माँ के आँचल का
या मालिश के बाद माँ के द्वारा
हाथ-पाँव और शरीर की
कराई जाने वाली कसरत का
क्या परिवर्तन संभव है…?
माँ के पाँव के झूलों का,
माँ के दुलार का….
जो चंदामामा के बहाने
दूध-भात खिला देता है
सच कहूँ तो…..
आज के इस मशीनी युग में भी
माँ और माँ की ममता का…
परिवर्तन संभव नहीं….!
और मित्रों यदिआप सहमत ना हो
तो चुनौती है आप सबको….!
बना लेना..! ढूँढकर दिखा देना..!
माँ की सीटी-का परिवर्तित रूप
जो नींद में भी……सपने में भी…
आपको सहज भाव से
निवृत्त करा देती है,
अंदर से जागृत करा देती है,
साथ ही ढूँढकर दिखा देना
माँ का कोई और परिवर्तित रूप
जो पैरों की चोट खाने के बाद भी
माथा सहलाते हुए ….
आपको अमृत पिलाती है..!
आपको अमृत पिलाती है..!
रचनाकार- जितेन्द्र दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर, जौनपुर।