ज्ञान सुधा (भाग-10)

ज्ञान सुधा (भाग-10)

===========
जन्म दाता पिता जो गुरू ज्ञान दे
अन्नदाता तथा भय से जो मुक्ति दे
उपनयन रूप में मन वचन शुद्धि दे
पांच सम हैं पितर उनको सम्मान दें।
राजमाता तथा मातृ वनिता की हो
मित्र वामांगिनी गुरू की पत्नी तथा
जन्मदाता सरिस पंच जननी यही
पांच का करना सम्मान माता यथा।
जीव का कर्म होता निमित मात्र है
पंच होते नियत मातृ के गर्भ में
कर्म विद्या निधन आयु धन योग है
कर्ता मै हूँ पड़ा जीव इस दम्भ में।
मीन दर्शन से कछवी तथा ध्यान से
पक्षी स्पर्श से पाल्य संतति करे
ज्ञानी विद्वान से ज्ञान मिलता सदा
श्रेष्ठ पुरूषों की संगति सदा हित करे।
स्वास्थ्य उत्तम है जब मृत्यु भी दूर है
आत्म कल्याण का कार्य कर लीजिए
मृत्यु के बाद तो होगा कुछ भी नहीं
तन मनुज श्रेष्ठ दुर्लभ सुफल कीजिए।
विद्या होती सदा कामधेनू सरिस
काल विपरीत असमय फलित होती है
मातु सम वह हितैषी है परदेश में
विद्या सुखदायिनी दिव्य एक ज्योति है।
एक गुणवान सुत श्रेष्ठ होता सदा
निर्गुणी शत तनय होना अच्छा नहीं
शशि किरण दूर करती निशातम सदा
रहते निस्तेज तारे हजारों वहीं।
शास्त्र सम्मत त्रिविध ताप हैं लोक में
ताप की शान्ति के तीन साधन कहे
योग्य सुत श्रेष्ठ वनिता सुसंगति तथा
शक्ति देकर सभी ताप हरते रहे।

रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Read More

Recent