मतदान करो (नज्म)

मतदान करो (नज्म)

चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं,
गाँवों-गरीबों में आने लगे हैं।
आँख-मिचौली खेलेंगे फिर से,
मगर दाग अपनी छिपाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

ए.सी. के बाहर निकलते ही कम थे,
बदन धूप में वो जलाने लगे हैं।
नफरतों में हो न इजाफा कहीं पे,
नया जोश फिर से दिखाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

मुहब्बत का कतरा अब तक मिला न,
दिल-ओ-जान अपना लुटाने लगे हैं।
जश्न-इंतकाम, ये तो चलता रहेगा,
मयखाने मुझको बुलाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

मतदान खुलकर करो दोस्तों तुम,
खारों के बीच गुल खिलाने लगे हैं।
ये सितारे जमीं पे फिर से हैं उतरे,
हमें अपने छाले दिखाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

गहरा है घाव इन किसानों का देखो,
वादों का मरहम लगाने लगे हैं।
कुछ आएँगे चेहरे, नये कुछ पुराने,
नये हथकड़े आजमाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

दिलाए जो रोजगार उसको चुनों तुम,
खुशामद में पांव कुछ दबाने लगे हैं।
दिखाते हैं ख्वाब कितना आँखों को झूठा,
महल-रेत का वो उठाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

करप्शन की रोटी खाने न देंगे,
हमें आसमां पे बिठाने लगे हैं।
पिएंगे वो भर-भर वोटों का प्याला,
मेरे अंजुमन में वो आने लगे हैं।
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

रामकेश एम. यादव (लेखक) मुम्बई

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