आई.पी.एल.मैच बनारस में…
बड़ी प्रतीक्षा के बाद…!
हुआ बनारस में भी,
आई.पी.एल का आगाज….
बी.एस.जी. टीम बनी… मतलब…
बनारसी साँड़ जाँबाज….
प्रायोजकों ने हॉर्डिंग्स पर,
लाल लंगोंट का लोगो…!
शहर भर में लगवाया… फिर…
अल्हड़-मस्त बनारसियों से,
खूब सलाम भी करवाया…
टीम का घर था “दुई-पाना”
सुर्ख कत्थई रंग के कारण
मुश्किल था इसको…!
कहीं किसी से छुपा पाना…
अंदाज… धोबिया पछाड़ का…
दर-ओ-दीवार पर रोशन था…
“पटक-पटक कर हराएंगे…?”
यह टीम का स्लोगन था…
गंदे खेल पर गालियाँ फिक्स थी,
अकेले दिखने या निकलने में…
खिलाड़ियों की अपनी-2 रिस्क थी
जो अच्छा कुछ कर गए तो….!
आसमान में भभूत का मंजर था….
कैच कहीं छूट गया तो,
खिलाड़ी के सीने में खंज़र था…
पर एक बात और…!
गँजेड़ी-भंगेड़ी और दरुहल-नशेड़ी
बनारसी दर्शकों की…
एक महिमा अपार थी… सचमुच…!
उन्हें हार-जीत दोनों ही स्वीकार थी…
हार-जीत दोनों पर….!
बजाते घंट घड़ियाल थे… इसलिए….
पूरे आयोजन के दौरान…!
खिलाड़ी भी कंफ्यूज़ ही रहे कि
बनारसी कितने गुरु घंटाल थे…
इसका अहसास जबरदस्त उन्हें,
तब एक और हुआ…
जब वापसी को वे तैयार थे…
यहाँ-वहाँ… हर जगह…
लिखे हुए पैम्फलेट गुलज़ार थे
“गुरु”… फिर पधारना… और…
आनन्द लेना इस नगरी में…
यह अलग बात है कि…!
“ठगी” हमारी पहचान है… लिहाज़ा…
हमने कुछ भी नहीं छोड़ा है,
आज आपकी गठरी में…
बुरा मत मानो इसे…!
यह तो रीति है यहाँ की…
ऐसे और भी मिलेंगे आपको,
यहाँ की हर एक डगरी में…
फिर सोच लो… ग़र कोई ईच्छा हो जो
कुछ घर ले जाने की… तो…
बस गंगाजल ले जाओ यहाँ से
माटी वाली गगरी में….!
बस गंगाजल ले जाओ यहाँ से
माटी वाली गगरी में…!
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
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