लोकसभा 2024 का चुनाव मण्डल बनाम कमण्डल होने की पूरी सम्भावना

लोकसभा 2024 का चुनाव मण्डल बनाम कमण्डल होने की पूरी सम्भावना

ध्रुवचन्द जायसवाल
लोकसभा 2024 के चुनाव में आरक्षण का मुद्दा गरमाने लगा है। कारण इंडिया महागठबंधन के प्रमुख विपक्षी पार्टी एवं यूपी बिहार सहित प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां केन्द्र में सरकार बनाने पर जाति आधारित जनगणना कराने की घोषणा कर दिया है। मोदी जी की सरकार बौखला गई है, इसीलिए आरक्षण पर चुनावों में मोदी उल—जलूल भाषण दे रहे हैं जो तथ्य से परे है। चुनाव में ध्रुवीकरण भी करना चाह रहे हैं किंतु सफलता मिलते हुए दिखाई नहीं दे रही है।1 जनवरी 1979 को मंडल आयोग का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने कर दिया था। बीपी मंडल आयोग का गठन का मकसद सामाजिक शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करना था। मंडल आयोग का रिपोर्ट 1980 में केन्द्र सरकार को सौंपते हुए सुझाव दिया कि 1931 को आधर बनाया था जिसमें पिछड़ों की आबादी 52% था। आयोग ने तर्क दिया था कि 1931 के आंकड़ों से मेल खाना चाहिए। मंडल आयोग का तर्क सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ था जिसमें आरक्षण 50% की सीमा निर्धारित थी।

नुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए पहले से 22.5% निर्धारित था। ऐसे में पिछड़ों को सिर्फ 27% आरक्षण दी गई किन्तु मत खिसकने के डर से लागू नहीं की गई थी। 10 वर्षों तक मंडल कमीशन की रिपोर्ट फाइलों में दबी पड़ी थी 1990 में केन्द्र सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह जी ने मंडल कमीशन की सिफारिश का एलान कर दिया। देश के पिछड़ों के लिए पहली सफलता मिली थी। पिछड़ों में अपने हक़ के लिए तेज गति से जागरूकता आई गई थी किन्तु भाजपा या यूं कहें कि मनुस्मृति को मानने वालों को यह नागवार गुजरा। भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कमंडल के माध्यम से पिछड़ों को अपने चक्रव्यूह में फसा लिया जिसके कारण पिछड़ों में तेज गति से आई जागरूकता धीरे-धीरे आरक्षण के मुद्दे भटक गई। भाजपा अपने रणनीति में सफल हो गई किन्तु आरक्षण की लड़ाई लड़ने वाले लालू प्रसाद यादव एवं नीतीश कुमार ने बिहार की धरती से भाजपा के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए अन्दर ही अन्दर अपनी रणनीति बनाते रहे।
उपयुक्त समय पर पुनः आरक्षण के मुद्दे पर सभी पिछड़ों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस बार अपना हक़ लेने के लिए तेजगति के साथ पिछड़ों में पुनः जागरुकता आ गई है। इसका प्रमाण अभी हाल के कई राज्यों के उप चुनावों से परिणाम से साबित हो गई कि मंडल बनाम कमंडल के नाम पर चुनाव लड़ा गया था। परिणाम आपके सामने है। भाजपा को पराजित होना पड़ा। बिहार प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस समय के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की रणनीति सफल हुई। बिहार में जाति आधारित जनगणना कराने में सफल रहे। पिछड़ों एवं अति-पिछड़ों की संख्या 63% है। सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो गई। यही स्थिति कमोबेश उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित सभी प्रदेशों की होगी आंकड़ों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा। बिहार सरकार की तर्ज पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंत्रिमंडल की कैबिनेट बैठक में जाति आधारित जनगणना कराने की निर्णय लिया गया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बिहार की तर्ज पर जनगणना कराने की घोषणा कर दिया।
केन्द्र सरकार ने महिला आरक्षण बिल सर्वसम्मति से पास कराकर लिया किन्तु पिछड़े वर्ग की महिलाओं के आरक्षण की व्यवस्था नहीं किया है। देश भर के पिछड़ों व पिछड़े वैश्यों पिछड़ी महिलाओं का आक्रोश एवं गुस्सा केन्द्र सरकार के प्रति दिखाई दे रहा है। इसी कारण 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। जाति आधारित जनगणना का मुद्दा इस समय एक बार पुनः चर्चा शुरू हो गई है। मामला गरमा रहा है। 2024 का चुनाव मंडल बनाम कमंडल पर होने की पुरी संभावना बनती जा रही है। केन्द्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना नहीं कराने से पिछड़ी जातियों में व्यापक स्तर पर जनाक्रोश तेजी से बढ़ा है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पिछड़े, पिछड़े वैश्यों, दलितों कई आदिवासियों की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का भविष्य तय होगा। मंडल बनाम कमंडल के नाम पर एक प्रमुख मुद्दा भी है। इस मुद्दे पर भी चुनाव लड़ा जा रहा है। केन्द्र सरकार जाति आधारित जनगणना कराने के अपने वादे से मुकर गई है। 2022 में ही आसार दिखाई देने लगा था कि अगला चुनाव अब मंडल बनाम कमंडल होने की पूरी संभावना है। इसकी भनक केंद्र सरकार को पहले से लग गई थी।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में स्पष्ट दिखाई दे दिया। पिछड़े, दलितों, आदिवासियों पिछड़े वैश्यों एवं अल्पसंख्यकों की बड़ी संख्या में वोट विपक्षियों के पक्ष में पड़ा, इसलिए कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई। भाजपा के रणनीतिकार देश की जनता की नब्ज नहीं पकड़ पाये। सभी माता—पिता अपने भविष्य की चिन्ता कम करते हैं। अपने बच्चों के भविष्य के लिए कुछ ज्यादा ही चिंतित रहते हैं किन्तु इनके बच्चों के भविष्य की चिंता केन्द्र सरकार को नहीं है। केन्द्र सरकार को एक खास वर्ग के बच्चों के भविष्य की चिंता है, इसलिए तो आनन-फानन में ई.डब्ल्यू.एस. तुरंत 10% आरक्षण लागू हो गया किन्तु गरीब सवर्णों को लाभ नहीं मिल रहा है किन्तु गरीब पिछड़े, वैश्यों, दलितों, आदिवासियों के बच्चों की चिंता देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं है, इसीलिए जाति आधारित जनगणना केन्द्र सरकार नहीं करा रही है। देशवासियों को हिन्दुत्व का पाठ पढ़ाया जा रहा है। जब देश में मुगलों का शासन था तब इन मनुवादियों को हिन्दू धर्म खतरे में नहीं दिखाई दे रहा था। आज संविधान धर्म निरपेक्ष है तो हिन्दू धर्म खतरे में है। सत्य यह है कि केन्द्र सरकार की सत्ता हाथ से धीरे—धीरे निकल रही है। पिछड़ों, दलितों, पिछड़े, वैश्यों सभी अल्पसंख्यकों में आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा की केन्द्र सरकार से खासे नाराज है|
कुल मिलाकर स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पराजित होना निश्चित दिखाई दे रहा है। केन्द्र सरकार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हिन्दुत्व का कार्ड खेलने की शुरुआत बजरंग बली के नाम से किया किन्तु निराशा हाथ लगी। हनुमान जी सबके रक्षक हैं, इसलिए स्वार्थी लोगों का साथ नहीं दिया। पुराने साधु-संतों ने केन्द्र सरकार के क्रिया कलापों से भली—भांति बखूबी परिचित हो गये, इसलिए अब भाजपा के झांसे में नहीं आने वाले हैं। स्मरण रहे कि जाति आधारित जनगणना करने की मांग धामवासी मुलायम सिंह यादव, शरद यादव एवं गोपीनाथ मुंडे ने भी पिछड़ों एवं पिछड़ी जातियों की महिलाओं के लिए संसद, विधानसभा सभाओं एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग समय-समय करते रहे। कई दशकों से पिछड़े जातियों के सामाजिक संगठनों द्वारा मांग करते आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त संसद के दोनों सदनों में सांसदों में प्रमुख रुप से मनोज झा, पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव सहित कई सांसदों ने भी केन्द्र सरकार से आरक्षण के समर्थन एवं जाति आधारित जनगणना करते हुए जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी की मांग की गई थी।
सांसद अनुप्रिया पटेल एवं चिराग़ पासवान ने भी संसद में पिछड़ों की सरकारी नौकरियों मे आरक्षण के अनुसार नौकरियां नहीं मिली हैं। सरकार का ध्यान आकर्षित किया था किन्तु सत्ता की सुख का ध्यान आते ही दुबारा मांग नहीं किया तथा जाति आधारित जनगणना कराने की भी मांग नहीं किया था। 2018 में केन्द्र सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री व पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस बात की घोषणा किया गया था कि 2021 के जनगणना के साथ ही जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी, इसीलिए पिछड़ों ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आपको पुनः प्रधानमंत्री के रूप मे अपार बहुमत से मतदान किया था किन्तु आपकी सरकार अपने वादे से मुकर गई है जबकि 97% प्रतिशत लोगों को जाति आधारित जनगणना से कुछ न कुछ लाभ होगा जिसमें सवर्ण भी शामिल है। कुछ सेक्टर मे एक खास वर्ग का ही कब्जा है। खासकर पिछड़ों के साथ घोर अन्याय हो रहा है। एक छोटा सा उदाहरण का उल्लेख कर रहा हूं। सरकार को 200 आईएएस की भर्ती करनी है। वर्तमान में दलित एवं आदिवासी बनेंगे। 45 आईएएस अफसर पिछड़े बनेंगे। 54 आईएएस अफसर आरक्षण से कुल 99 आईएएस जबकि सवर्ण बनेंगे 101 आईएएस जबकि सन 1931 के जातिगत जनगणना के अनुसार पिछड़ों को आरक्षण 101 आईएएस होने चाहिए। सवर्ण मात्र 51 आईएएस अफसर होने चाहिए।
वर्तमान में 101 आईएएस अफसर हो रहे हैं। यह विसंगतियां हैं। दूसरा उदारहरण सरकार के पास 100 रोटियां हैं। वर्तमान में सरकार पिछड़ों को आधी रोटी, दलित एवं आदिवासी को एक-एक रोटी सवर्ण को दो-दो रोटी खाने को दे रही है। कुछ संस्थानों में पिछड़े, दलितों, आदिवासियों, वैश्यों की स्थिति नगण्य है। यही स्थिति उच्च शिक्षण संस्था में नगण्य स्थिति में है पिछड़ों को पूर्ण रूप से आरक्षण का लाभ ही नहीं मिल रहा है। जहां तक प्राईवेट सेक्टरों में आरक्षण की मांग इसलिए है कि जनता द्वारा टैक्स मे दिए गए पैसे से अनेक प्रकार से केन्द्र एवं राज्य सरकारें अनेक सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं एवं पैकेज के तहत आर्थिक मदद भी करती है, इसलिए प्राईवेट सेक्टरों में आरक्षण की मांग जायज है जबकि भाजपा के सांसदगण सन् 2010 मे लोकसभा मे जातिगत जनगणना कराने की मांग करते हुए कांग्रेस की केन्द्र सरकार की नीतियों का जमकर विरोध किया था, इसीलिए खासकर पिछड़ों ने 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया था, ताकि 2021 के जनगणना जातिगत जनगणना होगा किन्तु केन्द्र सरकार द्वारा अपने किये गये वादा से मुकर रही है तथा धोखा दे रही है।
स्मरण रहे कि सन् 1931 के जनगणना अनुसार 52% पिछड़े है जबकि वर्तमान में लगभग 60% से 63% है। अभी और बढ़ने की संभावना है। वर्तमान में एक खास वैश्य को छोड़कर सभी पिछड़े वैश्य एवं सामान्य वैश्यों की भी नोटबन्दी एवं जीएसटी के कारण सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थितियां ठीक नहीं है, इसलिए जो भी वैश्य पिछड़ी जाति में शामिल होने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग को आवेदन किया है, उन्हें तत्काल पिछड़ी जाति में शामिल कर देना चाहिए। सभी पार्टियों के पिछड़ी जातियों के जनप्रतिनिधियों को अपने स्तर से केन्द्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की भी शिफारिश करनी चाहिए। इसकी सूचना अपने क्षेत्र के मतदाताओं को बताने का भी कष्ट करें। जब तक पिछड़ों की जनसंख्या सरकारी रिकॉर्ड नहीं होगी तब तक जन-कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पूर्णतः नहीं मिलेगा। संविधान के अनुसार जनसंख्या के आधार पर पिछड़ों को लाभ मिलेगा, इसीलिए जाति आधारित जनगणना कराने की मांग पिछडे समाज के जागरूक नेताओं ने पुरजोर ढंग से मांग करते आ रहे हैं| जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित होते ही 27% आरक्षण की सीमा अपने आप टूट जायेगी। जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना पड़ेगा जो लगभग 60% से 63% शत-प्रतिशत होगा या इससे भी अधिक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जाति आधारित जनगणना कराने की पहल शुरु नहीं किया तो भाजपा के विरुद्ध पिछड़ा, दलित, आदिवासियों, पिछड़े वैश्यों को लामबंद होने से कोई रोक नहीं पायेगा, क्योंकि पिछड़े दलित आदिवासी एवं पिछड़े वैश्य जाति आधारित जनगणना कराने के लिए भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ेंगे। जैसे 2014 मे कांग्रेस को हराने के लिए लोगों ने भाजपा को मतदान किया था। वहीं स्थिति बन रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए महागठबंधन के प्रत्याशियों को मतदान करेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति में भाजपा पहुंच जायेगी।
लेखक- ध्रुवचन्द जायसवाल
सामाजिक एवं राजनीतिक एवं विश्लेषक

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