आत्मतत्व दर्शन
“परमात्मा का द्वार आत्मा”
आज यहाँ हूँ, कल आऊँगा वहाँ, मृत्यु के बाद, जीवन है जहाँ।
लगेगा यह जग, बीता सपना, वही जीवन लगेगा, सच अपना।।
आज यहाँ हूँ, कल आऊँगा वहाँ…
बूढ़ा हो गया, अपना शरीर, मन बूढ़ा नहीं, चलाता तीर।
इंद्रियाँ हो गईं हैं, सब कमजोर, इच्छाएँ हैं बाकी, अभी जवाँ।।
आज यहाँ हूँ, कल आऊँगा वहाँ…
बार-बार, हजारों बार जनम, वही इच्छा अपेक्षा, वही करम।
दुख की ए जड़ें, है न कोई अन्त, दुख हरो, मिलो अब परमात्मा।।
आज यहाँ हूँ, कल आऊँगा वहाँ…
है अनन्त अन्तरिक्ष, तुम्हें ढूँढू कहाँ, सद्गुरु कहते, हृदय में हो यहाँ।
समर्पण करता, अपनी आत्मा को, तेरा द्वार मिला, मेरी आत्मा।।
आज यहाँ हूँ, कल आऊँगा वहाँ…
आज यहाँ हूँ, कल आऊँगा वहाँ।
मृत्यु के पहले, मिला तुमको यहाँ।।
आत्मिक श्रीधर