पुराने दर्द लिखूं या ताजे, खामोश है लब! चुप है कलम, अब तुम्हीं कहो कैसे हाल—ए—दिल लिखूं?

पुराने दर्द लिखूं या ताजे, खामोश है लब! चुप है कलम, अब तुम्हीं कहो कैसे हाल—ए—दिल लिखूं?

जितेन्द्र सिंह चौधरी
वाराणसी। लोकतंत्र का चौथा पाया चरमरा गया है। उसके सम्वाहक घायल होकर चित्कार कर रहे हैं! लगातार हत्या! घातक हमला कर कलम को थर्राने की कोशिश जारी है। वर्तमान में कलम कार के लिए हकीकत का एक एक लफ्ज़ लिखना पड़ रहा भारी है। गुन्डा, मवाली ,नेता, चोर, भ्रष्टाचारियों के साथ हाथ धोकर पीछे पड़ी मशीनरी सरकारी है। गजब का माहौल बन गया! जिसने काबिल बनकर सच लिखने की कोशिश की उनके जीवन का खुशनुमा पल अनर्गल आरोप का शिकार होकर जेल में खेल करने को मजबूर हो जाता है।

गजब भाई सारे सियासत के भ्रष्टाचारी खुलेयाम काट रहे है मलाई। न जाने कितने पत्रकार सच लिखने की सजा भुगत रहे हैं। कुछ सिसक रहे हैं। कुछ जग से नाता तोड चुके हैं। कितनों का घर विरान हो गया। सच का मसीहा सच के लिए कुर्बान हो गया। हकीकत के सतह पर हर जगह पत्रकारों की प्रताड़ना लगातार हो रहा है‌। इसमें सबसे बड़ी भागीदारी उस पत्रकार समाज की है जो लोकतन्त्र का कथित उपासक बनकर आज तक सियासत के साम्राज्य में चांदी काट रहा था। वहीं लिखता था जो शासक दल चाहता था। चाटुकारों की एक बिशेष प्रजाति के कलमकार आजकल परेशान हैं कारण बना हुआ।

आधुनिक जमाने का उभरता सोसल साईट का जागरूक पत्रकार जो छोटी से छोटी घटना चाहे दिल्ली की हो पटना की पलक झपकते ही वायरल कर दे रहा है। यही उस मिडिया के लोगों को खल रहा है जो नमक मिर्च लगाकर की टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में शक्कर में नमक डालकर दिखाते थे। आज उनकी पोल सोसल मिडिया मिनटों खोल रहा है। सरकार भी उनको ही अपना भाग्य विधाता मानती है। सारी सुबिधा उनकी ही झोली में डालती मैं फूट डालो राज करो का फार्मूला लागू है। आजकल सोशल मीडिया का पूरी तरह दुनिया में चल रहा जादू है। कल शाम मिर्जा पूर में सोशल मीडिया के पत्रकारों पर कातिलाना हमला हुआ।

बेचारे रात भर तड़पते रहे। पुलिस महकमा रात भर खर्राटे भरता रहा। तकलीफ उनको भी थी जो सच उजागर कर रहे थे। सावधान देश के संविधान में कहीं नहीं वर्णित किया गया है। चौथा स्तम्भ का अधिकार इसी का भरपूर फायदा उठा रही है। सरकार मुगालते में न रहे। जब तक संगठित होकर एक मंच पर नहीं आयेंगे सारे पत्रकार तब तक हमेशा होता रहेगा अत्याचार। दुर्भाग्य है कि कलम के बहादुर सिपाहियों का उनका कोई नहीं होता। वफादार जरूरत भर उपयोग कर दिया जाता है दरकिनार। बड़ा छोटा का विभेद पैदा कर खूब मजे लूट रहा है आज का सियासतदार। जरूरत है सम्हलकर हर कदम उठाने की सच लिखा।

सच दिखाया सच बढ़ाया तो खतरा है। सावधानी से सच की ईबारत बिना हसरत पाले अगर दिखाने की फितरत आपमें मौजूद हैं तो निश्चित रूप से आप में पूजा है। ‘अगर आप पत्रकारिता को धनउगाही का साधन बनाएंगे! तिजारत करेंगे तो समाज में हिकारत का अनुभागी बनना ही बनना है। पत्रकार समाज पर सरकारी फरमान जारी हो चुका है। हर तरफ से पर कतरने की तैयारी है। संगठित होइए अपने अधिकार को सरकार से मांगिए वर्ना आने वाला कल का दौर और भी बुरा दिख रहा है।

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