तभी दिख जाती हैं कठौती में गंगा

तभी दिख जाती हैं कठौती में गंगा

शतरंज के खिलाड़ी हों या प्यादे,
अच्छे लोग सदा ही सस्ते होते हैं,
बस मीठा बोल बना लो अपना,
यद्यपि वह लोग अनमोल होते हैं।

शायद इसीलिए हम लोग उनकी
कीमत बिलकुल नहीं समझते हैं,
लेकिन यह भी सत्य है एक सरल
व्यक्ति के साथ हम छल करते हैं।

यही छल बल हमारी बर्बादी के
सभी बन्द द्वार भी खोल देते हैं,
कितनी अच्छी शतरंज खेलते हों,
छल के सामने सब कुछ खो देते हैं।

मेरा मानना है जो अच्छा लगता है,
उसे तो अधिक गौर से नहीं देखो,
जो बुरा लगता है उसे भी मत देखो,
ख़ुद अच्छे बनो सब अच्छे दिखेंगे।

उठ गया छोड़कर रात कि खुमारी,
चाह मिटी, अब नही कोई बीमारी,
कहते हैं आदित्य जब मन हुआ चंगा,
तभी दिख जाती हैं कठौती में गंगा।

कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ

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