मन, मस्तिष्क और तन निर्मल हो

मन, मस्तिष्क और तन निर्मल हो

आशीर्वाद बड़ों का मिल जाय,
शुभकामना छोटों से मिल जाय,
भाई भाई को यही देना सुंदर हैं,
भाईचारा भी अच्छे से निभ जाय।

यद्यपि बड़ा भाई आदित्य कविता में,
जीवन दर्शन की मौलिकता रचता है,
कामना यही है कि आजीवन यूँ ही,
कवितायें वह निर्मित करता जाए।

यूँ ही अपनी रचनाओं के जरिये,
वो सुखद अमृतवर्षा करता जाय,
अमृत आनन्द का प्याला पीकर,
जीवन आनंद अनुभूति किये जायं।

भाई भाई के मध्य यही सबसे बड़ी
देन है ऐसे ही हौसला अफ़जाई हो,
लेखन हेतु कुछ भाव मिलते जायं,
और कल्पना सोच आगे बढ़ती जाय।

यही सोच, समझ और कल्पनाएं
उपलब्धियाँ सामने आती जायं,
विचारों से तालमेल होता जाय,
रचनात्मकता आगे बढती जाय।

माँ सरस्वती का वास सदा यूँ ही
मन के मंदिर में हो, जिह्वा में हो,
वागदा से यही विनय है जीवन में
कभी न शब्द अपशब्द हमारा हो।

आदित्य कथनी व करनी एक हो,
मनसा, वाचा और कर्मणा सम हो,
सज्जनता सरलता हमेशा बनी रहे,
मन, मस्तिष्क और तन निर्मल हों।

कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ

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