धर्म भाषा विविध वेशभूषा अलग हिन्दी की बिंदी फिर भी चमकती सदा प्रेम के भाव में रस से सिंचित है जो ऐसी हिन्दी से शोभित है जग सर्वदा।
देश की आन है देश की शान है हिन्दी तो हिन्द के लोगो की जान है हिन्दी का भेद निर्धन नृपति में नहीं यह तो देती सदा सबको सम्मान है।
नागरी देव है गंगाजल के सरिस प्रेम सरिता सलिल सम सुखद राग है भाव अनुभाव संयोग का है मिलन भाव संचारी में मंजु अनुराग है।
मैथिली कौरवी अवधी ब्रज मालवी भोजपुरिया की अपनी अलग शान है मारवाड़ी बघेली व छत्तीसगढ़ी संग गढ़वाली बुंदेली पहचान है।
देव भी देते सम्मान इसको सदा पांचवीं पीढ़ी की यह तो संतान है देवभाषा से उद्भव है इसका हुआ पालि प्राकृत व अपभ्रंश का भान है।
देव तुलसी ने जीवन दिया है इसे सूर रसखान दिनकर ने सिंचित किया हरिऔध जायसी पंत अज्ञेय संग मीराबाई ने प्रभु भक्ति गायन किया।
शीत अम्बर सरिस यश सितम्बर मधुर तिथि चतुर्दश में चौदह भुवन रत्न है मेरी हिन्दी अमर पल्लवित हो सदा राजभाषा का गौरव विमल ज्ञान है।। रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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