सफर से सफर तक
ख्वाहिशें मार दी हमने, कुछ आरजू अभी बाकी हैं…..
तुम्हे पाने की ख्वाहिश छोड़ दी हमने, तुमसे मुलाकात की आरजू अभी बाकी है…
जब तुम और हम साथ साथ होंगे तो कुछ गुफ्तगू भी होगी…
या तो ख्वाहिशें जिंदा होगी, या फिर आरजू भी मार देंगे हम…
बिना ख्वाहिशों के आरजू रखने का क्या फायदा…
बिना मंजिल के रास्ते पर चलने से क्या फायदा…
या तो ख्वाहिशें ही मुकम्मल हो, या फिर बो रास्ता मंजिल तक हो…
सब कुछ अधूरा रहे, ऐसी आरजू का क्या फायदा…
शिवम गुप्ता
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