जय श्री राम: जन—जन के मन में आराध्य राम समाये हैं…भगवान अयोध्या आये हैं
राजेश श्रीवास्तव
अयोध्या। रामनगरी में गोरखपुर-लखनऊ मार्ग से एक स्कूटी गुरुवार दोपहर में रामनगरी की ओर मुड़ती है। धर्मपथ पर आते ही चालक वाहन रोक देता है। रियर व्यू मिरर पर हेलमेट लटकाकर वह पीछे खोंसी बैसाखी खींचता है। जिस झटके से बैसाखी अवध की माटी छूती है, उसी त्वरा संग दिव्यांग दूसरे हाथ से रामरज सिर-माथे सजा बोल पड़ता है- जय श्रीराम। जयघोष, पीछे से आए साइकिल सवार उत्साही रामभक्तों का साथ पाते ही उच्चघोष बन जाता है। ध्वनि तरंगे आसपास के लोगों का मानस स्पंदित कर देती हैं और जन मन में समाए राम धर्मपथ की इस अनुगूंज में प्रकट हो जाते हैं। भाव का यह ज्वार नंगे पांव आराध्य का नव्य धाम निहारने जाती टोली में उत्साह भर देता है। रामनाम का अमृत पाकर वे दुरूह यात्रा की थकान भूल आगे बढ़ जाते हैं। इन छवियों को मोबाइल फोन कैमरे में सहेजते देख भागलपुर, बिहार के नवगछिया से चारपहिया स्कूटी लेकर आए दिव्यांग कन्हैया लाल पास आ जाते हैं। जय श्री राम बोल वह पत्रकार होने के अनुमान को पुष्टकर अपने मनोकामना रथ का अभीष्ट बताने लगते हैं। पांच सौ साल की प्रतीक्षा के बाद रामलला की उनके मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को वह राष्ट्र के सौभाग्य का सूचक मानते हैं। अयोध्या जी में आराध्य के दिव्य धाम निर्माण को रामराज्य की नींव बता कहते हैं- देश में सभी को निश्शुल्क शिक्षा और चिकित्सा मिले, इसी कामना से मनोकामना रथ लेकर नवगछिया से निकला हूं। जंघे से कटा बायां पैर दिखाते हैं और सैकड़ों किमी लंबी यात्रा पूर्ण होने पर इसका श्रेय वह प्रभु को देते हैं। कहते हैं- मैंने तो बस संकल्प लिया, यहां तक तो भगवान ही लेकर आए हैं। यही वह आस्था है जो असंभव को संभव कर देती है। रामनगरी की राह में पग-पग पर इससे परिचय होता है। कभी दस दिन से पैदल चलकर आते भाई सुहेलराज यादव और राकेश यादव मिलते हैं तो कहीं पर मधुबनी से साइकिल चलाकर आते नीरज झा और बीडी झा। ठंड या कष्ट उस भाव के आगे गौड़ हैं, जो इनके जैसे अगनित रामभक्तों के हृदय में प्रतिष्ठित है। इस यात्रा को सौभाग्य मान ये कहते हैं- भगवान अयोध्या आए हैं और वही यहां ले आए हैं।
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