कोरोना संक्रमण से पीड़ित विश्व अभी उबर भी नहीं पाया है कि तृतीय विश्व युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है। संक्रमण पीड़ितों में अमेरिका प्रथम स्थान पर है। विश्व के अनुपात में अमेरिका का संक्रमण दर एक तिहाई तथा मृत्यु दर एक चौथाई से भी ज्यादा है। यदि यूरोप को देखा जाए तो विश्व संक्रमण का अनुपात तथा मृत्यु अनुपात की स्थिति बहुत ही भयावह है। यही कारण है कि बौखलाया यूरोप-अमेरिका पूरे पीड़ित राष्ट्रों को यह समझाने में लगभग सफल होता दिख रहा है कि यह सारी कारस्तानी खूनी चीन की है। जिसके कारण पूरी दुनिया कराह रही है। यहां यह समझना आवश्यक है कि इस वायरस का जन्मदाता चीन तथा भुक्तभोगी यूरोप-अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में अधिक संक्रमण क्यों है?
एक बात जो सामान्य रूप से दिखाई देता है वह है खान-पान। इसे स्पष्ट समझने के लिए चीन के घटनाक्रम को समझना आवश्यक है। जब बुहान के मीट मार्केट को बंद किया गया तथा हुबेई प्रांत में लॉकडाउन किया गया। उसके बाद भी चीन के अन्य प्रांतों के कसाई खानों में रोज हजारों जानवरों को काटा जा रहा था। जिसका प्रयोग (निर्यात) बदस्तूर जारी था। चीन के टायसन फूड (Tyson Foods) के बने स्वादिष्ट मांसाहारी खाद्य, उस दौरान सबसे ज्यादा अमेरिकियों ने खरीदा और उपयोग किया। जिसका परिणाम हुआ कि यह सभी देश अपने यहां मांसाहारी खाद्य पर नियंत्रण ना करके कोरोना वायरस (संक्रामक मौत) को दावत दे बैठे। यूरोप के देशों में जानवरों के गोश्त के अलावा जूस, सूप, अचार सहित कई प्रकार के खाद्य पदार्थ का सेवन प्रचलित तथा आम है। काफी समय तक सुरक्षित तथा संरक्षित रखकर उपयोग किया करते हैं।
यह रहस्य तब सामने आया जब टायसन (Tyson’s) में कार्यरत 2200 सौ कर्मचारियों में से जांच करने पर लगभग 900 कर्मचारी कोरोना संक्रमित पाए गए। तब जाकर चीन ने ऐसे कसाई खानों एवं कंपनियों को बंद करने का निर्णय लिया। तब तक अमेरिका एवं यूरोप के लोग इसका काफी उपयोग कर चुके थे। वैसे भी चीनी कंपनियों के बने सामानों के डुप्लीकेसी एवं विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। इस विकट घड़ी में भी चीन युद्ध अभ्यास कर रहा है। अमेरिका ने उस प्रयोगशाला को खोल दिया है जिसने 9 अगस्त 1945 में जापान के नागा-साकी में परमाणु बम का प्रयोग किया था। जिसकी निगरानी व्हाइट हाउस से स्वयं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे हैं। बड़े-बड़े वैज्ञानिक योद्धा बुला लिए गए हैं। यह कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस के इलाज की खोज की जा रही है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ होने (नवंबर 2020) के पूर्व अपने माथे पर लगे इस कलंक को धोने की जल्दी में डोनाल्ड ट्रंप हैं जबकि कोरोना संक्रमण से मुक्ति पाने में जैसा कि स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का मानना है कि कम से कम 2 वर्ष लग सकते हैं।
युद्ध ही किसी समस्या का समाधान नहीं होता अन्य रास्ते भी अपनाए जा सकते हैं। ऐसे में केवल यही कहा जा सकता है कि यदि तृतीय विश्व युद्ध होता है तो नि:संदेह उसका कारण “मांसाहार” ही होगा। भारतीय हिन्दू पुरनियों का यह कथन कि “जैसा खाये अन्न वैसा होए मन” सर्वथा सिद्ध होता दिख रहा है। भारत सरकार को भी आयात-निर्यात में इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि भारतीयों के मौलिक शाकाहारी प्रवृत्ति प्रभावित ना हो। वैसे भी पृथ्वी पर निवास करने वाले मनुष्य जाति को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि “वह कौन सी गलती हमसे हुई है? जिसके कारण हमें मुंह छिपाना पड़ रहा है । हम आज अपने ही घर में कैद क्यों हैं?
जय हिंद, जय विश्व साभार डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला राजा श्री कृष्णदत्त पी.जी. कॉलेज जौनपुर
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