मैं चूड़ियां पहनती हूं
हां मैं चूड़ियां पहनती हूं।
प्रातः सूरत सी उगती हूं।
शाम को ढलके चांद की,
रौशनी सी चमकती हूं।
हां मैं चूड़ियां पहनती हूं।
मैं बागों के फूलों सी महकती हूं।
चिड़ियों के जैसे घर आंगन में चहकती हूं।
अपने सपनों को दबाए,
मैं हर रोज अपनों के लिए पिघलती हूं।
हां मैं चूड़ियां पहनती हूं।
मैं अपनी जिम्मेदारियां भी समझती हूं।
हर दिन एकदम सवेरे ही उठती हूं।
ख़ुद से पहले अपनो के लिए जीती हूं।
त्याग और समर्पण के घूंट हर दिन पीती हूं।
हां मैं चूड़ियां पहनती हूं।
मैं प्रेम रूपी बारिश की बूंदों से
अपने परिवार को सिंचती हूं।
मैं उनके लिए ही जीती हूं।
हो मुश्किल घड़ी तो, उनके साथ चलती हूं।
हां मुझे गर्व है कि,
मैं चूड़ियां पहनती हूं।
(सर्वाधिक सुरक्षित स्वरचित रचना)
रचनाकार: स्टूडेंट टीचर सपना मिश्रा मुंबई