मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं: तिरुवलय नारायण शेषन
मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं: तिरुवलय नारायण शेषन
मैं मानवों के उस प्रजाति का हिस्सा हूं जिसे पाल घाट ब्राह्मण कहा जाता है। इसकी 4 किस्में पाई जाती है। रसोए धोखेबाज सिविल सर्वेंट और संगीतकार मैं समझता हूं। मुझमें थोड़ी बहुत सारी खूबियां है। यह शब्द हैं तिरुवल्लभ नारायण अय्यर सेशन जिन्होंने एक जमाने में एक मशहूर जुमला बोला था। मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं। भारतीय चुनाव व्यवस्था में आमूल बदलाव करने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वह तिरुवलय नारायण अय्यर शेषन को। 10 दिसंबर 1990 को जब तिरुवलय नारायण अय्यर शेषन भारत के 9वें मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए तो कानून मंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने चुनाव आयोग से संसद में पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए कहना शुरू कर दिया। शेषन ने इसका जोरदार विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग सरकार का कोई विभाग नहीं है। विजय भास्कर रेड्डी इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के सामने ले गए जहां कहा कि शेषन आप सहयोग नहीं कर रहे हैं। मैंने जवाब दिया कि मैं कोई को ऑपरेटिव सोसाइटी नहीं हूं। मैं चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करता हूं। प्रधानमंत्री यह सुनकर सन्न रह गये।
मैं फिर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की तरफ मुड़कर कहा। मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, अगर आपके कानून मंत्री का यही रवैया रहा तो मैं उनके साथ काम नहीं कर सकता। टीएन शेषन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि मुझे याद है जब मैं कैबिनेट सचिव था तो प्रधानमंत्री ने मुझे बुलाकर कहा। मैं चुनाव आयोग को बता दूं कि मैं फला—फला दिन चुनाव करवाना चाहता हूं। मैंने कहा कि मैं ऐसा नहीं करूंगा। मैं चुनाव आयोग को सिर्फ यह बता सकता हूं कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है। शेषन लिखते है। इसके पहले मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के दफ्तर के बाहर बैठकर इंतजार किया करता था कि उसे कब अंदर बुलाया जाय। पहले चुनाव आयोग के साथ पिछलगू जैसा व्यवहार किया जाता था। हमारे दफ्तर में सभी लिफाफों पर लिखकर आता था। चुनाव आयोग भारत सरकार मैं उन्हें साफ कर दिया। मैं भारत सरकार का हिस्सा नहीं हूं। जब शेषन मुख्य चुनाव बने तब विधि सचिव रामा देवी ने चुनाव आयोग को फोन करके कहा कि विधि राज्य मंत्री रंग राजन कुमार मंगलम चाहते हैं कि अभी इटावा का उपचुनाव न कराया जाए। मैं नरसिम्हा राव को सीधे फोन मिलाते हुये कहा कि सरकार को शायद गलतफहमी है कि मैं घोड़ा हूं और सरकार घुड़सवार है। मैं यह स्वीकार नहीं करूंगा। अगर आपके पास किसी फैसले को लागू करने के बारे में एक अच्छा कारण, जैसे बाढ़ आना, सुखा पडऩा, हैजा फैलना है तो आप बताइए। मैं उस पर सोच—विचार करूंगा लेकिन मैं यह ना करूं, वह ना करूं, मैं किसी के हुकुम का पालन नहीं करूंगा।
प्रधानमंत्री ने मेरी पूरी बात सुनने के बाद कहा कि आप रंगराजन से अपना मामला सुलझा लीजिए। शेषन ने कहा कि मैं उनसे नहीं आपसे मामला सुलझाऊंगा। मैं चाहूंगा कि रंगराजन कुमार मंगलम चुनाव आयोग के फैसले को प्रभावित करने की कोशिश करने के लिए माफी मांगे कुमार मंगलम ने ऐसा ही किया। एक चिट्ठी द्वारा जिसमें लिखा था। मैंने जो कुछ कहा था। उसके लिए मैं आपसे माफी मांगता हूं। 2 अगस्त 1993 को रक्षाबंधन के दिन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने 17 पेज का आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा। शेषन ने अपने आदेश में यह भी लिखा कि चुनाव आयोग ने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाला हर चुनाव जिसमें 2 साल पर होने वाले राज्यसभा, 5 साल पर लोकसभा विधानसभा और उपचुनाव जिनकी कराए जाने की घोषणा की जा चुकी है। अगले आदेश तक स्थगित रहेगी टीएन शेषन पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इससे इतने नाराज हुए कि उन्होंने शेषन को पागल कुत्ता तक कह डाला। पूर्व प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने कहा मैंने तो पहले कारखाने में लॉक आउट के बारे में सुना था लेकिन शेषन ने तो प्रजातंत्र को ही लॉक आउट कर दिया है। पीठ पीछे लोग शेषन को अलसेशियन कहने लगे थे। सरकार ने इसका तोड़ निकालने के लिए 1 अक्टूबर 1993 को इसी पद के बराबर वेतन पाने वाले दो और चुनाव आयुक्तों, जी.बी.जी. कृष्णमूर्ति और एम.एस गिल की नियुक्ति कर दी जिससे टीएन शेषन काफी गुस्सा हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना और मशहूर कानूनविद् फलीमन नरीमन ने भी इसका समर्थन नहीं किया और कहा कि यह मुख्य चुनाव आयुक्त के ताकत को कम करने के लिए किया गया है। कृष्णमूर्ति ने पद संभालते ही राष्ट्रपति से शिकायत किया कि उन्हें आयोग में बैठने की जगह नहीं दी जा रही है। तीनों चुनाव आयुक्तों की मुलाकात अच्छी नहीं रही। टी.एन शेषन लिखते हैं कि कृष्णमूर्ति मेरे कमरे में आकर कोने में पड़े सोफे पर बैठ गए और मुझसे सोफे पर बैठने के लिए कहा— मैंने हाथ जोड़कर कहा। मैं जहां बैठा हूं। वही ठीक हूं। इस पर कृष्णमूर्ति मूर्ति बोले। मैं तुम्हारी मेज के सामने पड़ी कुर्सियों पर तो बैठने से रहा। यह सब तुम्हारे चपरासियों के लिए है तभी एम.एस गिल कमरे में प्रवेश किया। कृष्णमूर्ति गिल से कहा कि गिल उनके सामने वाली कुर्सी पर मत बैठना। इनसे कहो कि यह यहां सोफे पर आकर बैठे। गिल ने मुझसे पूछा, क्या आपको सोफे पर आकर बैठने पर आपत्ति है। मैंने कहा कि किसी और दिन मैं सोफे पर तो क्या कालीन पर भी बैठ सकता हूं लेकिन आज नहीं फिर कृष्णमूर्ति मुझे गालियां देनी शुरू कर दी।
इस बीच गिल खड़े रहे उनको समझ में नहीं आया। वह सोफे पर कृष्णमूर्ति के बगल में बैठे या मेरे सामने वाले कुर्सी पर इसके बाद कृष्णमूर्ति अपनी दाया टांग उठाकर मेज पर रख दी। फिर वह मेरे पास आकर बोले— क्या आपकी मुझे हाथ मिलाने की इच्छा है। मैं चुप रहास इसके बाद वह दोनों कमरे से उठकर चले गए हद तब हो गई जब टीएन शेषन अमेरिका गए तो अपना चार्ज उपचुनाव आयुक्त रहे डीएस बग्गा को दिया जबकि उन्हीं के बराबर दो मुख्य चुनाव आयुक्त जे.बी जी कृष्णमूर्ति और एमएस गिल बैठकर उन्हीं के बराबर वेतन ले रहे है। टीएन शेषन राजनेताओं में केवल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पसंद करते थे। एक बार राजीव गांधी ने सेशन को छेड़ते हुए कहा था। वह दाढ़ी वाला शख्स उस दिन को कोसेगा जिस दिन वह तुम्हें चुनाव आयुक्त बनाया था। दाढ़ी वाला शख्स और कोई नहीं प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे। दो चुनाव आयुक्त के रहते हुए तिरुवलय नारायण अय्यर शेषन ने अपना कार्यकाल पूरा किया टी.एन शेषन के बारे में कहा जाता था कि भारतीय राजनेता 2 से डरते हैं। पहले ईश्वर और दूसरा तिरुवलय नारायण अय्यर शेषन। (टी.एन शेषन) ने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद, बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बक्शा। उन्होंने बिहार में पहली बार 4 चरणों में चुनाव करवाया और चारों बार तारीखे बदली गई। यह बिहार के इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था। (इसमें कुछ अंश बीबीसी हिन्दी समाचार लिया गया है।)
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन जौनपुर
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