होली, देवर और भौजाई
गाँव-देश में बेहद सुंदर और मोदक
रिश्ता होता है देवर भौजाई का..!
देवर…….
भौजाई का संदेशवाहक होता है,
ननद-भौजाई की खटपट और
सास-ससुर के शासन से इतर
भौजाई का अभिमान होता है…
घर का ही नहीं
पास-पड़ोस का देवर भी,
भौजाई के दुखम-सुखम का
साथी होता है….और…
भौजाई भी कभी तिरछी नज़र से
कभी अपनी सुबानियों से
अक्सर ही देवर पर
अपना जादू चला जाती है…
देवर-भौजाई का प्रेम,
होली पर परवान चढ़ता है
हँसी, हुल्लड़, गारी-मज़ाक वाले
इस रंग बिरंगे त्यौहार का इंतजार
पूरे साल करता है देवर..
पर मित्रो बदलता दौर देखो
होली से ठीक पहले….
भौजाइयाँ बीमार हो जाती हैं…
नई वाली पढ़ी-लिखी भौजाई को
रंग-अबीर सूट ही नहीं करता…
पुरनकी भौजाई तो बच्चों से
बाहर ही से ताला लगवा देती है…
भौजाइयाँ रंगों से हर हाल में
अपना बचाव करती हैं,
यह अब आम बात है…!
देवरों का भी…..
कुछ बदला सा मिजाज है
सगरी भौजाइयों को
रंगना चाहता है पर,
यह भी जतन करता है कि
उसकी बीवी को,
कोई भौजाई ना कहे….!
बदलते परिवेश में,
रिश्ते भी बदल से गए हैं…
भौजी-भौजाई वाला रस
बचा ही नहीं …..
भौजाई…भाभी हो गया है
दिल के रिश्तो पर,
दिमाग का रिश्ता
हावी हो गया है…..!
इसीलिए अब होली जैसे
रंगीले त्योहार में भी…
कुछ देवर और कुछ भौजाइयाँ
बिना रंगे रह जाती हैं…
पर सही बात यह है कि
बाद में वे बहुत ही पछताते हैं
और आने वाली होली तक
एक दूसरे को गरियाते हैं… और
होली का शगुन मनाते हैं….
होली का शगुन मनाते हैं….
रचनाकार…
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
क्षेत्राधिकारी नगर, जौनपुर।
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