गजल
खुदा ही जानें मुकद्दर के क्या इशारे हुए।
खड़े ही रह गए बाहों को हम पसारे हुए।
हमारे जेहन में ताजा गुलाब जैसे हैं।
तुम्हारे साथ वो लम्हे सभी गुजारे हुए।
मजाक उड़ाते हैं तन्हाई का मेरे अक्सर।
तेरे बिछड़ते ही दुश्मन भी चाँद तारे हुए।
समुंदरों के सफर में तो साथ-साथ रहे।
सफीना आते ही गर्दिश में सब किनारे हुए।
हमें हकीर नजर से न देख ऐ वाइज।
यकीन मान फलक से हैं हम उतारे हुए।
पुकारता था शबो रोज जो मुझे कैसर।
जमाना हो गया उस शख्स को पुकारे हुए।
कैसर जौनपुरी