सोचिए आखिर इन सबका जिम्मेदार कौन?

सोचिए आखिर इन सबका जिम्मेदार कौन?

इस समय आपराधिक घटनाओं जैसे बलबा मारपीट, जबरन दूसरों की जमीनों पर कब्जा, सड़क हादसे, द्रुतगामी बाइक फोर व्हीलर भिडंत, दहेज हत्या, आत्महत्या जैसी संदिग्ध मौतों में इजाफा हुआ है। साथ ही बलात्कार, छेड़खानी, छिनैती, महिलाओं युवतियों और छात्राओं को अगवा करके उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म करने वाली अप्रिय घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। अग्निकांड, किसानों की पकी खेतों में खड़ी फसलें जलकर राख में तब्दील हो रही हैं।

ये अग्निकांड जैसी घटनायें अज्ञात कारणों, बिजली की चिंगारी और मानव जनित भी होती हैं। दुखद अप्रिय वारदातें तो होती ही रहेंगी। लोगों को खुद बाखुद ऐसी वारदातो को अंजाम नहीं देना चाहिए। स्वयं की लालच, हवस पर नियंत्रण पाने की जरूरत है। लालच और खुद गरजी की वजह से ही हत्या, बलात्कार, छिनैती चोरी डकैती, दहेज हत्या जैसी घटनाओं में इजाफा हो रहा है।
सड़क हादसे के बारे में इतना कहना ही काफी है कि वहां चालकों द्वारा यातायात के नियमो का पालन नहीं किया जा रहा है जबकि सरकार जागरूकता पर लाखो रुपए खर्च करती है। पुलिस यातायात पुलिस और परिवहन विभाग के लोग आए दिन हेलमेट पहनो सीट बेल्ट लगाओ, गति सीमा नियंत्रित रखो, डीएल और आरसी साथ रखो। चालान जुर्माना से भी बचो।

नशा करके वहां मत चलाओ, यातायात के नियमो को पालन करो। सुरक्षित घर पहुंचो वहां आप का कोई इंतजार कर रहा है लेकिन नहीं। लोगों का मानना है कि जो कुछ भी हो रहा है, सब प्रभु इच्छा पर। मारपीट बलवा, दहेज उत्पीड़न और महिलाओं के साथ छेड़खानी, छात्राओं को अगवा कर बंधक बनाकर उनके साथ दुष्कर्म और सामूहिक बलात्कार किया जाना, चोरी, छिनैती आदि दुखद एवं अप्रिय घटनाएं होना जाहिर तौर पर पुलिस महकमे की हनक और सख्ती की नाकामी ही कही जाएगी। ऊपर से यदि थाना पुलिस पीड़तों की तरफ तवज्जो नहीं देता है तो सबसे अधिक दुखद स्थिति यही कही जाती है।
थानों पर गंभीर मामलों में सुसंगत धाराओं की अनदेखी करके उनका अल्पीकरण करना एक परंपरा बन गई है। हत्या को दुर्घटना और डकैती को छोटी चोरी कहने का रिवाज समाप्त किए जाने की जरूरत है। पुलिस पीड़ितों के साथ मित्रवत व्यवहार भी नही करती है। पुलिस का रवैया अंग्रेजों के जमाने जैसा ही है। बड़े बड़ों की अकल थाना पहुंचने पर ठिकाने लग जाती है। थाना पुलिस से यदि दलालों और विचौलियों की मित्र सेवा कम या बंद हो जाए तब कुछ उम्मीद जगती है कि आम आदमी गरीब तबके के लोग पुलिस से जस्टिस पा सकते हैं। पुलिस जन भी अपने हाव—भाव से दर्शाते हैं कि उन्होंने इस महकमे में नौकरी ही इसीलिए किया है कि रुतबा रुआब और पैसा मिले।
सरकारी विभागों में छोटे से लेकर बड़ा काम लेकर कार्यालयों में जाने वालों को तरह तरह से परेशान किया जाता है। यह क्रम तब तक जारी रहता है। जब तक बिचौलियों का सहारा न लिया जाए। यहां भी दलाल प्रथा कायम है। घूस देने पर ही काम होगा, अन्यथा भटकते ही रहिए। परिवहन, विकास, कृषि, गन्ना, मार्केटिंग, उद्यान, बिजली, रजिस्ट्री, पूर्ति, शिक्षा, बैंक, डाकघर, रेलवे जैसे अनेकों प्रदेशीय और केंद्रीय महकमे में सुविधा शुल्क का प्रचलन अपनी गति से चल रहा है। हो—हल्ला करने वाले भी अपना काम करते हैं लेकिन मजाल क्या कि किसी पर कोई असर पड़े। पूर्ति महकमा की बात चले तो कोटेदार और राशन लाभार्थियों की बातें होना लाजिमी हो जाती हैं। इनके बीच होने वाली अप्रिय घटनाएं अशोभनीय वार्ता लाप, घटतौली कट तोली आदि का जिक्र न हो तो सब अधूरा ही कहा जायेगा। कोटेदारों की हरकतें प्रायः मीडिया की सुर्खियों में रहती हैं।
सरकारी महकमो में तो ऐसा रिवाज है जहां फरियादियों को नजरंदाज किया जाता है। प्रशासन हो या पुलिस महकमा कहीं पर बगैर सुविधा शुल्क के कोई भी काम नही हो रहा है। उधर सरकार जिले में विकास के नाम पर सरकारी तिजोरी का मुंह खोल देती है और यहां अधिकारी गण जिले के अवाम को विशुद्ध भारतीय रूप से माननीयों की तरह भ्रमित करने में जुट जाते हैं। मीडिया के जरिए ये होगा, वह होगा। मतलब जिले में गांव से लेकर कस्बों, बाजारों और शहरों का काया कल्प हो जाएगा। ऐसा होगा जैसा दुनिया के विकसित देशों में होता है। इनके ऐसा कहने से प्रतीत होता है कि ये किसी विकसित देश के सरकारी अफसर हैं।ऐसे वक्तव्य सर्वथा हास्यास्पद लगते हैं। विभागीय अधिकारियों को चाहिए कि ऐसे मीडिया वक्तव्यों से परहेज करें। इनके द्वारा सच्चाई से रूबरू कराकर जिज्ञासुओं की जिज्ञासा शांत किया जाना चाहिए।

वन विभाग-
जिले में जंगलों की कटान जारी है, कई लाख पेड़ लगाने यानी पौध रोपण होना है। परिणाम सभी देख रहे हैं। फोटो सेल्फी का प्रचलन जोरो पर है। पौध रोपण तो आवश्यक है ही फिर भी पुराने प्राण वायु प्रदाता पेड़ों की अवैध कटान रोकने की जरूरत है। पौधरोपण के बाद ट्री गार्ड और समय समय पर खाद पानी जैसे पोषण की नितांत आवश्यकता होती है परंतु सरोकारियों द्वारा ऐसा नहीं किया जाता है। यह सोचनीय विषय है।

अग्निकाण्ड और दमकल विभाग—
दमकल विभाग में संसाधनों का अभाव है। मैन पावर और संसाधन बढ़ाए जाएं। ऐसा होने पर ही समय पर अग्निकांडो से जूझा जा सकता है। जन धन की हानि से बचा जा सकता है।

मिलावट एक अति महत्वपूर्ण विषय— आज हम जो कुछ भी खाद्य पदार्थ का सेवन कर रहे हैं, वे मिलावटी और सेहत के लिए हानिकारक हैं। मिलावट खोर अपनी कमाई के लिए रसायनों का इस्तेमाल कर अशुद्ध और प्राण घातक सामग्रियां बेंच रहे हैं। इस पर रोक लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग कार्य रात है लेकिन विभागीय अधिकारी खानापूर्ति करके स्वयं की जेबें भर रहे हैं। सरकारी जिम्मेदारों से बड़े जिम्मेदार हम खुद हैं। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।
सत्यम सिंह गर्गवंशी
एसोसिएट एडिटर
रेनबो न्यूज
मो.नं. 7081932004

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