तत्व-व्रह्म ग्यानी जासु ध्यान नित उर धरै
अगुन अखण्ड सोइ अनत स्वरूप हैं।
वेद कहैं नेति नेति शिव अज जासु अंस
सेवक प्रदीप जासु सोई भुवि भूप है।
दास्य भक्ति ऐसे प्रभु वश में रहत नित
लीला बहु करि धरि रूप प्रतिरूप हैं।
गिरा श्रुति सत मानि मनु आस लिये मन
एक अभिलाष उर प्रभु अनुरूप है।।
षट सहस बरष अहार बारि सो त्यागि पुनि मारूत रहे।
दस सहस बरस बिहाइ सब पद एक होइ पुनि तप सहे।
विधि संभु मनु पहिं आइ बहु वर लोभ हित तासो कहे।
विचलित हुये नहिं धीर दोउ मनु हिय धरे रत तप गहे।।
दशा देखि मनु शिव विधि आये बहु बार
मांगु बर नृप अस लोभ सब दीन्हो है।
धीरपुंज तपरत मनु बस एक आस
प्रभु स्वामी एक प्रन दरस को लीन्हो है।
गात भयो अस्थि दुख तदपि तनिक नाहीं
प्रभु सर्बग्य निज दास तब चीन्हो हैं।
मांगु वर गिरा नभ श्रवन सुनत हिय
पुलकि शरीर मनु दण्डवत कीन्हो हैं।।
विधि हरि हर वन्दित सदा चरन रेनु नित नेम।।
हर्षित मनु प्रभु सो कहेउ सोइ पद रज मम प्रेम।।
जेहिं रूप शिव उर बसत नित मुनि हेतु जेहिं जप तप करैं।
मन महं विराजत जागबलिक भुसुंडि नित गायन करै।
जेहिं सगुन निर्गुन रूप कहं श्रुति दिवस निसि महिमा कहैं।
प्रभु कृपा मोपर करहुं अब सोइ दरस दम्पति सुख लहैं।।
रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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