बचपन बनाम बुढ़ापा
बच्चों की तोतली जुबान में….
गाड़ी को गाली, तिवारी को तिवाली
यहाँ तक कि भोथली वाले और थाले,
तूतिया जैसी गालियाँ भी
किसको नहीं सुहाती हैं….
उनकी घुटुरुअन चाल पर,
मिट्टी खाने की आदतों पर,
चप्पल, जूता, खिलौना-रद्दी
किसी भी सामान को,
मुँह में डालने पर
पहले रोचक-आनंद लेने,
फिर प्यार से-दुलार से…
डाँट कर मना करना
किसको नहीं अच्छा लगता…
बच्चों के खड़े न होने की दशा में,
लड़खड़ा कर गिरने में…
या फिर धीमे-धीमे,
अपने पीछे-पीछे भागते देखना,
रेस में चुपचाप उन्हें जिता देना
किसको नहीं सुहाता…
बच्चों कोअपनी थाली में खिलाना
चंदा मामा का बहाने बनाना
खाना खिलाते समय
दाँत से काटे जाने पर भी
कोई शिकायत न करना
यहाँ तक कि जब दो-चार दाँत हों
तो मुँह में अँगुली डालकर
अँगुली कटवाने की चाहत,
किसको नहीं होती…
एक अजीब सा उत्साह होता है
बच्चों को नहलाने में,
उनके बदन की तेल मालिश में
सभी नखरे बर्दाश्त किये जाते हैं
सभी नुस्खे अपनाए जाते हैं
पर अफसोस….!
बूढ़ा अगर तोतला हो जाए,
गालियाँ देने लगे,
छड़ी के सहारे…
खड़े होने में लड़खड़ाने लगे
तो बूढ़ा हंसी का पात्र बन जाता है
मोहल्ले-समाज की नजरों में
पागल घोषित हो जाता है
यदि मुँह में दो-चार दांत बचे हो
तो खाना खिलाना तो दूर
खाना नसीब होना भी
मुश्किल हो जाता है….!
दाँत काट लेने का डर
सताने लगता है और,
हम हाथ की बजाय
चम्मच से खिलाना शुरू कर देते हैं
बुजुर्गों को तो कभी-कभार
या यूँ कहें….!
मौका दर मौका नहलाया जाता है
मालिश की तो…..!
फुर्सत ही नही है किसी को
यही दुनिया है….यही समाज है
यही रीति है……यही रिवाज है
खुद ही देख लो भाई….
बचपनऔर बुढ़ापे की परवरिश में
कितनी बड़ी है खाई…..
जाने क्यों हम भी…..!
कुछ नहीं समझ पाए हैं
अब तक कि किसने…?
यह नीति-यह रीति बनाई है
कि जिसने सँवारा हो
हँसता-खेलता-लोटता बचपन…!
वही बुढ़ापे में दे रहा
परवरिश की दुहाई है…. !!
वही बुढापे में दे रहा
परवरिश की दुहाई है….!!
रचनाकारः- जितेन्द्र कुमार दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर, जौनपुर।