जीजा, साली और मेला
हमारे गाँव-देश में हर साल
एक-दो मेले जरूर लगते हैं
मेला घूमना और खरीददारी करना
चाट-चबैना, चोटहिया जलेबी का
आनंद लेना आम बात है….
मेले का आनंद और बढ़ जाता है
जब कभी नसीब से
किसी भाग्यशाली की साली,
मेले के दिन जो घर पर होती
फिर तो मेला घुमाने का
जो भाव घुमड़-घुमड़ कर
मन में आता….!
उसकी कल्पना तक
नहीं की जा सकती और यदि
कहीं मेला घूमने का प्रस्ताव
साली की तरफ से हो तो
कसम से…….!
आनंद दो-चार गुना बढ़ जाता
माँ-बाप की चोरी से और
बहनों-भाईयों से बचते-बचाते
जीजा-साली, मेला घूमने का
अवसर ढूंढ ही लेते हैं….
पूरे मेले में दस-बीस मनचले
गाँव वालों से नजरें बचाते,
आँखें चुराते, कनखी काटते हुए
पूरे रास्ते भर क्या खाना है..?
क्या चाहिए या फिर
साथ में झूला झूलेंगे कहते हुए
नवाबजादे जीजा….!
काशी नरेश बन जाते हैं
भले ही जेब में
सासु माँ के दिए हुए
चोरौंधा वाले रुपए ही हों…
मेले में गोलगप्पा, जलेबी खाकर
चूड़ी-कंगन, लिपस्टिक की
खरीददारी कर, झूले का आनन्द
और हाँ…साली के माध्यम से ही..
बीबी के लिए खरीददारी कर लेना
सामान्य सी बात होती है
जाहिर है…! बहाना बनाना भी
आसान ही होता है….
मेले से घर वापसी पर,
बहनों की खुसुर-फुसुर….
छोटे भाई की नाराजगी
विशेषकर खुद को…
मौका ना मिलने का मलाल और
माँ-पिताजी के गुस्से से
रूबरू होना पड़ता है
घर आई नई बहुरिया/बीवी को
और इन सब से इतर
जीजा के अंदर इस बात की
टीस बनी रहती है कि
जमाना कहाँ से कहाँ गया और
मेरे घर-परिवार वाले अभी भी
दशकों पीछे चल रहे हैं
अब सही हो या गलत…!
आज तो पूरी हुई मेरी आस
बहुत अच्छा लगता
साली को मेला घुमाना, अगर…
घर वाले सपोर्ट करते काश..!
बहुत अच्छा लगता
साली को मेला घुमाना, अगर…
घर वाले सपोर्ट करते काश…!
रचनाकार- जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर, जौनपुर।