जातीय गणना पर बिहार सरकार को शीर्ष कोर्ट से राहत, देश के पिछड़ों में प्रसन्नता

जातीय गणना पर बिहार सरकार को शीर्ष कोर्ट से राहत, देश के पिछड़ों में प्रसन्नता

ध्रुवचन्द जायसवाल
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के जाति गणना के मामले में बड़ी राहत देते हुए साफ कर दिया कि इसके आधार पर आगे बढ़ सकती है। देश भर में पिछड़ों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई है। उक्त के सम्बन्ध में शीर्ष अदालत ने 2 जनवरी 2024 को सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखी जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया। पक्ष-विपक्ष की दलीलों को सुननें के बाद 5 फ‌रवरी तक टाल दिया। उक्त समाचार अखबारों में प्रकाशित होने पर देश भर में पिछड़ों में आशा किरण दिखाई देने लगी है। बिहार प्रदेश में जाति-गणना को कानूनी लड़ाई में सफल हुई तो सम्पूर्ण भारत में जाति-गणना से कोई सरकार मुकर नहीं सकती है। जाति-गणना से पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों एवं अधिकत्तर सवर्णो को भी लाभ होगा। यूं कहे कि 97 प्रतिशत लोगों को लाभ होगा। संविधान के तहत पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों को आरक्षण मिला हुआ है किन्तु आज तक पिछड़ों को उनके जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं मिला है। सन् 1931 के जाति-आधारित जनगणना के अनुसार 52 प्रतिशत जनसंख्या पिछड़ों का सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है, फिर भी पिछड़ो हक़ नहीं दिया गया है। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केन्द्र सरकार के कैबिनेट वरिष्ठ मंत्री ने 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले 2018 में एक बैठक के बाद ब्यान जारी करते हुए कहा था कि 2021 में जनगणना के साथ ही जाति-आधारित जनगणना केन्द्र सरकार कराएगी किन्तु केन्द्र अपने वादे से मुकर गई है। केंद्र सरकार का रुख पिछड़ों के प्रति ठीक नहीं है, इसलिए महिला आरक्षण बिल में पिछड़ी महिलाओं को संसद में आरक्षण नहीं दिया जबकि संविधान में पिछड़ों के हित में आरक्षण की व्यवस्था की गई है किन्तु वर्तमान केन्द्र सरकार पिछड़ो को आरक्षण नहीं देना चाहती है क्योंकि पिछड़ों की संख्या बढ़ेगी, इसीलिए केन्द्रीय कार्यालयों मे लाखों पद सन् 2014 से आजतक रिक्त है।
पिछड़े वैश्यों को आरक्षण का लाभ पूर्ण रूप से आज-तक इसलिए नहीं मिला, क्योंकि मुख्य कारण राजनीतिक पकड़ नहीं के बराबर है, इसलिए महासभा कि रणनीति है। अपने समाज एवं पिछड़े वैश्यों को केन्द्र में सत्ता में भागीदारी दिलाने हेतु 2024 में उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में 17 लोकसभा संसदीय सीटों पर सिर्फ पिछड़े वैश्य ही चुनाव लड़ेंगे। वैश्य बाहुल्य संसदीय सीट से कोई भी पिछड़ा वैश्य लोकसभा चुनाव लड़नें के तैयार है। वह महासभा के वरिष्ठ पदाधिकारियों से सम्प्रर्ग स्थापित कर सकता है। महासभा विचार-विमर्श करके हर स्थिति में बिना किसी भेदभाव के हर स्तर की मदद करने की रणनीति बनाई है। शीघ्र महासभा की चुनाव संचालन समिति पूर्वांचल के जिलों का दौरा करते हुए वैश्यों को स्मरण कराते हुए अवगत करायेगा कि 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में मेरे समाज सहित पिछड़े वैश्यों को एक भी भाजपा ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया था तथा 2017 एवं 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में उपेक्षा किया, इसीलिए महासभा ने उ.प्र. विधान परिषद एवं राज्यसभा में समाज को प्रतिनिधित्व करने का अवसर देने का लिखित एवं मौखिक अनुरोध किया था। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ने कोई संज्ञान भी नहीं लिया। अब सत्ता में भागीदारी हेतु चुनाव लड़कर अपना हक़ लेगा।
लेखक अखिल भारतीय जायसवाल सर्व वर्गीय महासभा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।

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