भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र में चुनाव और चुनाव के लिए राजनीतिक दलों का होना आवश्यक है। अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन राजनीतिक दल को राष्ट्र के विकास में बाधक मानते थे। उन्होंने दल विहीन सरकार का गठन (1789) में किया था। अमेरिकी संविधान में दल व्यवस्था को मान्यता नहीं दिया था लेकिन द्विदलीय व्यवस्था स्वयं अस्तित्व में आ गया। यही स्थिति लगभग ब्रिटिश लोकतंत्र की भी रही है। ब्रिटिश ने विश्व पर शासन किया वहीं अमेरिका ने दुनिया को महाशक्ति के रूप में लोहा मनवाया। भारत 1947 में आजाद हुआ।
आरके हास्पिटल शाहगंज ने खोलने के लिये किया आवेदन
आजाद भारत में बहुदलीय प्रणाली को अपनाया गया। विभिन्नताओं में एकता स्थापित करने की चुनौती भारत के कंधों पर थी। भारत में बहुत सारे विदेशी आए शासन किए, लुटे-खसोटे, तोड़फोड़ कर वापस चले गए लेकिन व्यापार के नाम पर भारत में प्रवेश करने वाले गोरे अंग्रेज भारतीय सत्ता पर काबिज होकर मंदिर मस्जिद तो नहीं तोड़ा लेकिन भारतीयों के कमजोर नस (धर्म -जाति) को पकड़ा। “फूट डालो और राज करो” (डिवाइड एंड रूल) की नीति में सफल रहे लेकिन इतना से ही उनका मन नहीं भरा। भारतीय संस्कृति- सभ्यता, रहन-सहन से लेकर मानसिक चिंतन को विकृत करने का कार्य किया।
युवक ने गांव में किया सेनिटाइजर, दिया संदेश
पश्चिमी संस्कृति -सभ्यता, रहन-सहन, सोच-विचार को सर्वोपरि सिद्ध करने का हर संभव प्रयास किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अभी तक हम भारतीय उसी चक्रव्यूह में फंसे पड़े हैं। पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता का अनुसरण करने में हम अपने मूल संस्कृति व सभ्यता को भूल चुके हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के व्यूह रचना के हम शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रभक्ति की जगह दल भक्ति का भूत प्रभावी हो जाता है। दलों के जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आधारित नेता अपने महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ाने में सफल हो जाते हैं। जिसका परिणाम है कि अधिकांश भारतीय नौजवान अपने मूल उद्देश्य से भटक कर जाति धर्म आधारित राजनीति के शिकार होकर अपने महत्वपूर्ण (निर्णायक) उम्र को पार कर जब होश में आता है।
जौनपुर : कोरोना को लेकर गम्भीर होने की एडीएम ने की अपील
समझने लायक होता है। तब तक पैरों तले से जमीन खिसक चुकी होती है। भारत युवाओं का देश है कहते हुए हमें फक्र (गर्व) होता है। युवा किसी भी राष्ट्र का भाग्य विधाता (निर्माणकर्ता) होता है। युवा का भटकाव राष्ट्र निर्माण में बाधक तो होता ही है। स्वयं की सुख-सुविधाओं का क्षरण तथा पारिवारिक विकास को अवरुद्ध करता है। सही माता-पिता-गुरु के निर्देशन में पला बढ़ा योग्यता व क्षमता को महत्त्व देने वाला नौजवान देश दुनिया में राष्ट्र का नाम रोशन करने के लिए तैयार होकर आगे आता है। वहीं कुछ ऐसे परिवार के बच्चे जिसे माता-पिता का निर्देशन सही नहीं मिला। सही गुरु की पहचान नहीं कर सके। जुगाड़तंत्र व दल के दलदल में अपने सुकुमार जीवन को धकेल देते हैं।
जौनपुर : कोरोना को लेकर गम्भीर होने की एडीएम ने की अपील
इसका लाभ वैसे बुद्धिमान लोगों को प्राप्त हो जाता है जो आर्थिक-राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इनका भरपूर इस्तेमाल करके क्षणिक लाभ की भट्ठी में झोंक देते हैं। उत्तर भारत के खासकर बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश (पूर्वांचल) के नौजवानों, आमजनों, यहां तक कि कुछ बुद्धिजीवियों में दलगत कठोरता को ज्यादा हद तक देखा जा सकता है। जिसका परिणाम है कि इस क्षेत्र का औद्योगिक विकास अवरुद्ध सा हो गया है। नौजवान पलायन के लिए मजबूर है। योग्यता व दक्षता के अनुरूप काम पाने के लिए देश-विदेश की यात्रा करने के बाद ही वह कुछ करने-पाने की स्थिति में आता है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
कोरोना ने हम भारतीयों को यह दुखद मार्मिक एहसास (अनुभव) कराया है कि युवा काल में (बचपन से 40 वर्ष तक) अपने जीवन को सुधारने व भविष्य को संवारने पर ध्यान देना चाहिए। किसी भटकाव से बचना चाहिए। भारत का बहुदलीय व्यवस्था व राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने भारतीय नौजवानों का गलत इस्तेमाल समय-समय पर किया है। जिसका परिणाम है कि दल के दलदल में फंसा श्रमिक नौजवान दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है। हृदय विदारक दृश्य जगह—जगह देखने को मिल रहा है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। यह समय उपयुक्त है जब हम आत्म समीक्षा करें और इस क्षेत्र के पिछड़े होने के कारणों पर गंभीरता से विचार करें।
“हर वक्त नया चेहरा हर वक्त नया वजूद,
आदमी ने आईने को हैरत में डाल दिया है।”
के साथ हीं मोहम्मद इकबाल के शब्दों को दोहराना चाहता हूं कि:
“”कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा।”
जय हिंद-जय भारत
डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला
विभागाध्यक्ष
राजनीति विज्ञान विभाग
राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर
संपर्क 9451 33 6363