क्यों मनाया जाता है एकादशी महापर्व?
क्यों मनाया जाता है एकादशी महापर्व?
डा. दिलीप सिंह एडवोकेट
एकादशी महापर्व मनाया जाने का कारण है कि भगवान श्री हरि विष्णु 4 महीने के चातुर्मास में देव लोग छोड़कर योग निद्रा में लीन हो जाते हैं या 4 महीने की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास की दशमी तिथि तक रहता है और इस कार्य के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह संस्कार मुंडन यज्ञोपवीत संस्कार गृह प्रवेश इत्यादि नहीं किया जाता है।
वैदिक और पौराणिक कथा देवोत्थान एकादशी के बारे में प्रचलित वैदिक और पौराणिक कथा या है कि वृंदा नाम की एक महा पतिव्रता स्त्री थी जिसका विवाह राक्षस राज जालंधर से हुआ था वह इतना शक्तिशाली हो गया था कि वृंदा के तब के प्रभाव से उसे कोई हरा नहीं सकता था। उसने तीनों लोगों को विजय प्राप्त कर लिया था और चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई थी। अंततोगत्वा जगत के कल्याण के लिए भगवान श्री हरी विष्णु जालंधर का वेश बनाकर वृंदा के पास गए जिससे उसकी तपस्या भंग हो गई और जालंधर मारा गया बाद में वृंदा ने भगवान विष्णु के इस छल कपट वाले कृत्य से क्रोधित होकर उन्हें पत्थर हो जाने का श्राप दिया। बाद में भगवती लक्ष्मी और समस्त जगत के अनुरोध पर उन्होंने श्री हरि विष्णु को जैसे कट कर दिया तभी से शालिग्राम की जगह उत्पन्न हुई तुलसी की पूजा की जाती है और एकादशी के दिन शालिग्राम जो भगवान विष्णु का एक स्वरूप है उसे तुलसी का विवाह कराया जाता है।
देवोत्थान एकादशी का वैज्ञानिक एवं धार्मिक महत्व देवोत्थान एकादशी को हरि उठनी देव उठनी और हरी प्रबोधनी एकादशी तथा जुठवन भी कहते हैं। प्राचीन काल में जब घनघोर वर्षा होती थी। आवागमन का कोई साधन नहीं था और आज 80 सेंटीमीटर की जगह 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा से ताल पोखर नदियां ओपन कर सारी धरती को जलमग्न कर देते थे तब आषाढ़ सावन भादो ग्वार महीने में कोई कार्य नहीं हो सकता था, इसलिए चातुर्मास का नियम बनाया गया कि इन 4 महीनों में विवाह और अन्य कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होगा। लोग अपने घरों में रहकर आराम करेंगे, इसलिए भी हरि प्रबोधिनी और हरिशयनी महापर्व बनाया गया था। इसी बहाने लोग अपने घरों में धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते थे और शारीरिक विश्राम करते हुए आत्मचिंतन भी किया करते थे।
गन्ने का किसी भी रूप में प्रयोग वर्जित था, क्योंकि तब तक गन्ने का रस पकता नहीं था एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता था। सावन महीना में मछलियों का पकड़ना और खाना इसीलिए मना था कि मछलियां पूर्ण रूप से विकसित हो जाए और यही हालत पर महीने में भी था 4 महीना बहुत उग्र होता है और सीट गर्म के कारण मांस मछली का खाना वैसे भी स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। कहने का तात्पर्य है कि भारत का प्रत्येक महापर्व और दैनिक कार्य से लेकर प्रत्येक कार्य धर्म अध्यात्म और विज्ञान की पूर्णता में किए जाते थे। उससे अच्छी व्यवस्था आज तक दुनिया में नहीं बन पाई है।
इस वर्ष देवोत्थान एकादशी 4 नवंबर को मनाई जाएगी। दिन शुक्रवार है। वैसे तो 3 नवंबर को ही रात में 8:57 से एकादशी की तिथि लग रही है लेकिन उदया तिथि के चलते हैं। 4 नवंबर को मनाई जाएगी। उस दिन एकादशी पूरे दिन भर हैं और शाम को 7 बजे तक है, इसलिए एकादशी से संबंधित पूजा-पाठ 7 बजे तक समाप्त कर लेना चाहिए सामान्य रूप से पूजा पाठ की विधि लगभग सभी सनातन धर्म के त्योहारों में एक है। केवल प्रतीक चिन्ह बदल जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पैर शालिग्राम और तुलसी की पूजा होती है तथा उनका विवाह कराया जाता है। फूल माला और धूप दीप जलाकर भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा होती है। इसी दिन देव दीपावली भी बनाई जाती है जिनके घर किसी भी कारण से दीपावली नहीं मनाते, उसके यहां एकादशी के दिन दिवाली मनाई जाती है।
देवोत्थान एकादशी को देव दीपावली भी कहा जाता है। एक धार्मिक आध्यात्मिक सांस्कृतिक और दार्शनिक होने के साथ पूर्व वैज्ञानिक महापर्व है इसमें साफ सफाई ऋतु परिवर्तन के अनुसार की जाती है और भोजन भी ऋतु परिवर्तन के अनुसार खाया जाता है जो लोग एकादशी व्रत रहते हैं, उनका पारण इस वर्ष 5 नवंबर को सूर्योदय के बाद होगा देवोत्थान एकादशी एक अद्भुत पर्व है। यद्यपि इस वर्ष ग्रहों के उदय और अस्त होने के कारण 23 नवंबर के बाद ही विवाह सहित अन्य मांगलिक कार्य होंगे।
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