वैद्य भगवान और बदलते पैमाने
वैद्य भगवान और बदलते पैमाने
एक आला/स्टेथोस्कोप और
झोले में जरूरत भर की
दवाईयों का डिब्बा लेकर
गाँव देश में….अक्सर…
साइकिल से भ्रमणशील वैद्य जी,
भगवान का दूसरा नाम होते थे…
लक्षण भाँपकर, नाड़ी देखकर
शिकायतें सुनकर…..
लीवर, तिल्ली, जीभ, आँख और
नाखून से… मर्ज़ और माज़रा…
सब जान लेते थे वैद्य जी….
आज जमाना बदल गया है
टेस्ट, दवाई, पैथोलॉजी के नाम पर
शुरू में ही मरीजों की
जान निकल जाती है…..
कुछ दवा से, कुछ दुआ से और
कुछ मीठे बोल से….फिर….
शेष बचा हुआ मर्ज़….
मरीज़ से मोल-तोल से
हर लेते थे वैद्य जी…..
वैद्य और रोगी के बीच
तीमारदार के अलावा
कोई नहीं होता था….
वैद्यजी के साथ कोई भी व्यक्ति
चलने से कतराता था…..
क्योंकि हर व्यक्ति वैद्य जी को ही
नमस्ते, दुआ, सलाम करता और
अदब से हाथ उठाता था….
ज़ाहिर है साथ चलने वाला
उनकी शोहरत से घबराता था…
आज के चिकित्सक तो चैंबर में हैं
प्रेसक्रिप्शन लिखते हैं और
अपने पीछे कई और मेंबर्स के
खुले चैम्बर्स खोल रखे हैं….
अब तो दवाओं में भी खेल है,
दुआओं में दम की कमी तो नहीं
पर विश्वास खत्म सा हो गया है…
मोल-तोल का अध्याय तो….
बन्द ही हो गया है….
मीठी बोल-भाषा तो….
चिकित्सकों के स्तर पर…
जाहिलों की पहचान हो गई है….
जाहिर है… चिकित्सक अब…
दूसरा भगवान नहीं है…..
पैसों के आगे अपमान का भी
उसे भान नहीं है……
जो नाम कमाया था वैद्य जी ने,
उसकी चाहत अब बन्द हो गई है
समाज में.. आज का चिकित्सक..
मजबूरी का भगवान हो गया है…
शोहरत की जगह अब उसकी,
जग हँसाई हो रही है….
यह अलग बात है कि,
उसकी नज़र में कमाई हो रही है..
यह अलग बात है कि,
उसकी नज़र में कमाई हो रही है..
रचनाकार—— जितेन्द्र मार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज
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