तुलसी-जीवन वृत्त
ज्ञान सुधा-भाग-५३
तजि तीर्थराज प्रयाग तुलसी, मुदित मन काशी चले।
प्रहलाद घाट निवासी किय तहं विप्र गृह हर्षित भले।
पायो अनुग्रह मातु शारद कवि सुकृत तासो फले।
कृति पद्य देवगिरा दिवस सो अदृश होइ निशा ढले।।
एहिं भांति तुलसी रचित प्रतिपद प्रतिदिवस ओझल भये।
भवितव्यता यह दैवयोग भ्रमित चरित यह नित नये।
प्रभुकाज जग कल्यान कारन, धर्म हित माया लये।
यह मरम तुलसी ज्ञान नहिं तहं बीति आठ दिवस गये।।
जाकी कृपा शिशुरूप महं सोइ स्वप्न तुलसी को दियो।
कृत काव्य निज भाषा रचहुं कहि शम्भु अन्तरहित भयो।
निद्रा विगत तेहिं काल तुलसी देखि शिव हर्षित नयो।
पुनि धन्य जीवन जानि तुलसी शिवा शिव चरनन्हि पर् यो।
बोले शंभु तुलसी सो जाओ राम जन्म भूमि
वास करि तहां रामकथा उर में धरो।
सामवेद सम तव कृति होगी फलीभूत
रचना सृजन काव्य जनभाषा में करो।
चले है अवधपुरी प्रीति रघुनाथ लिये
हिय ध्यान राम कथा दुख प्रभु मेरो हरो।
चैत मास नवमी तिथि, शक सोलह इकतीस।
जोग लगन त्रेता सरिस, जेंहि प्रकटेउ प्रभु ईश।।
राम चरित आरम्भ किय, प्रातकाल धरि शीश
सप्त मास द्वय वर्ष कृति, लगि वासर छब्बीस।।
शुकलपक्ष तिथि पंचमी, पावन अगहन मास।
रामचरितमानस रच्यो, लीन्हो प्रभु पद वास।।
….क्रमशः
रचनाकार— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
मो.नं. ९९१८३५९०८
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