कठिना नदी का जंगल बन गया बाघ का बसेरा, काबिंग शुरू
विशाल रस्तोगी
महोली, सीतापुर। कठिना नदी के किनारे जंगल में बसेरा बनाए बाघ को घेरने के लिए वनकर्मी निगरानी के साथ कांबिग कर रही है। सोमवार को कोई नया पगचिन्ह नहीं मिला। शनिवार की रात बाघ पिंजरे के पास आकर फिर लौट गया था। पिंजरे में शिकार भी बांधा गया था, फिर भी उसने अंदर प्रवेश नहीं किया। रविवार को उसके पगचिन्ह मिले थे। बाघ कई बार पिजरे तक आ चुका है। फिर भी फंस नहीं रहा। असफलता से निराश वन कर्मी भी हार नहीं मान रहे। झाला के पीछे जहां पिजड़ा लगा है, आस पास निगरानी तेज कर दी है। पिजरे का स्थान पहले ही बदला जा चुका है।
वन कर्मियों ने कठिना नदी के किनारे खेत व झाले के आस पास बाघ की तलाश में कांबिग की। बाघ नदी के किनारे जंगल में है। वह रात के समय जंगल से निकलकर विचरण करता है। पहले पिजरा नदी के किनारे जंगल में लगा था। वहां दो बार बाघ के पगचिन्ह पिजरे के सामने मिले। बाघ ने पिजड़ा में प्रवेश नहीं किया। इसके बाद पिजड़ा वहां से हटाकर झाला के पीछे लगाया गया है। यहां भी बाघ के पगचिन्ह आस-पास मिल रहे हैं। एक बार वह पिंजरे में प्रवेश कर जाए तो कैद हो जाएगा। लेकिन वह पिंजरे में नहीं जा रहा। एक माह से अधिक समय से बाघ यहां जंगल में छिपा है। बाघ कारेदेव, चड़रा, रुस्तम नगर के आस पास नदी किनारे भटक रहा है। पूर्व में बाघ एक गोवंश का शिकार कर चुका है। वन रेंजर सीके पांडेय ने बताया कि बाघ का आज पगचिन्ह नहीं मिला है। रविवार को पगचिन्ह मिले थे, निगरानी के साथ कांबिग की जा रही है। बाघ को कैद करने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है।