तीसरा चरणः ब्रज से रूहेलखण्ड तक 10 सीटों पर मुकाबला

तीसरा चरणः ब्रज से रूहेलखण्ड तक 10 सीटों पर मुकाबला

अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश में अब 7 मई को होने वाले तीसरे चरण के मतदान के लिए रस्साकशी तेज हो गई है। तीसरे चरण में ब्रज और रुहेलखंड की 10 सीटों पर मतदान होगा जिसमें संभल, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद, बदायूं, बरेली, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, एटा एवं आंवला की सीटें शमिल हैं। इस चरण में मुलायम और कल्याण के गढ़ में मुख्य मुकाबला होगा। डिंपल यादव, अक्षय यादव और आदित्य यादव की सियासी किस्मत इसी चरण में तय होगी।

डिंपल जीत जारी रखने और अक्षय यादव और आदित्य यादव सपा की खोई सीट वापस पाने की लड़ाई लड़ेंगे। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह के सामने भी हैट्रिक लगाने की चुनौती होगी। वह एटा से उम्मीदवार हैं। इस चरण की 10 में 8 सीटों पर इस समय भाजपा काबिज है। संभल और मैनपुरी सपा के खाते में हैं, बाकी 8 सीटों पर 2019 में भाजपा जीती थी।
मुस्लिम बहुल संभल सीट से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क का निधन होने के चलते सपा ने उनके पोते और कुंदरकी से विधायक जियाउर्रहमान बर्क को उम्मीदवार बनाया है। 2014 में यह सीट भाजपा जीती थी लेकिन पिछले चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने उसकी राह रोक दी थी। संभल में 2019 में हार का सामना करने वाले परश्मेवर लाल सैनी इस बार भी भाजपा के उम्मीदवार हैं जबकि बसपा ने शौलत अली को टिकट दिया है।

हाथरस, फतेहपुर सीकरी और बरेली में भाजपा हैट्रिक और आगरा एवं आंवला में लगातार चौथी जीत दर्ज करने की उम्मीद लिए मैदान में है। वहीं सपा एवं कांग्रेस इस बार साथ हैं जबकि बसपा अलग चुनाव लड़ रही है, इसलिए अधिकतर सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने की ही उम्मीद है। सिलसिलेवार इन सीटों की समीक्षा की जाय।
आगरा लोकसभा सीट पर किसके सिर ताज सजेगा, यह भी बड़ा दिलचस्प होगा। अगर विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों पर नजर डालें तो केंद्रीय राज्य मंत्री और मौजूदा सांसद एसपी सिंह बघेल अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बतौर भाजपा प्रत्याशी हैं। बसपा ने कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य रहीं सत्या बहन की पुत्री पूजा अमरोही को टिकट थमाया है। सपा ने पुराने बसपाई रहे जूता कारोबारी सुरेश चंद कर्दम पर भरोसा जताया है। बघेल पर अपना दबदबा बराकरार रखने तो सुरेश चंद कर्दम पर सपा के लिए पिछले 3 लोकसभा चुनावों में इस सीट पर पड़ा सूखा खत्म करने की चुनौती है। पूजा अमरोही के समक्ष पर बसपा का खाता खोलने की चुनौती होगी। मोहब्बत की नगरी आगरा चुनाव में किस पर प्रेम वर्षा करेगी, इस पर निगाहें लगी हैं।
बरेली लोकसभा सीट पर भाजपा ने 8 बार के सांसद संतोष गंगवार का टिकट काटकर भाजपा ने पूर्व राज्यमंत्री छत्रपाल गंगवार को उम्मीदवार बनाया । इसे लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी जरूर थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रुहेलखंड में हुईं अपनी जनसभाओं के मंच पर संतोष गंगवार को स्थान देकर इस नाराजगी को दूर कर दिया है। 2009 में भाजपा के इस मजबूत किले को मामूली जीत के अंतर से ढहाने में कामयाब हुए पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन को सपा ने फिर इसी उम्मीद से मैदान में उतारा है। यहां भाजपा-सपा की सीधी लड़ाई है।
संभल लोकसभा सीट के सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद इस सीट पर उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए कुंदरकी के सपा विधायक जियाउर्रहमान यहां समाजवादी उम्मीदवार हैं। पहले सपा ने शफीकुर्रहमान बर्क को टिकट थमाया था लेकिन उनका निधन होने पर उनके पोते को मैदान में उतारा है। मुस्लिम बहुल इस सीट पर जियाउर्रहमान के कंधों पर अपने परिवार का वर्चस्व बरकरार रखने का दारोमदार होगा। बतौर भाजपा प्रत्याशी पूर्व एमएलसी परमेश्वर लाल सैनी के सामने इस सीट पर भाजपा को 2014 में मिली एकमात्र सफलता को दोहराने के साथ पिछले चुनाव में खुद को मिली हार का हिसाब चुकता करने की चुनौती है। बसपा के लिए पिछले दो चुनावों में यह सीट बंजर साबित हुई है। ऐसे में बसपा प्रत्याशी सौलत अली के लिए हाथी कितना प्रभावी होगा, यह देखना होगा।
मैनपुरी लोकसभा सीट सपा ने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने के लिए पार्टी की मौजूदा सांसद डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारा हैं। मुलायम सिंह के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी सीट पर दिसंबर 2022 में हुए उपचुनाव में साइकिल की रफ्तार से प्रतिद्वंद्वियों को हतप्रभ कर उन्होंने यादव परिवार की राजनीतिक विरासत को संभाला था। अब उन पर इस विरासत को सहेजने और संजोये रखने की जिम्मेदारी है। सपा इस सीट पर 1996 से काबिज है। वहीं अब तक अजेय साबित हुई मैनपुरी सीट पर भगवा परचम लहराने के लिए भाजपा ने स्थानीय विधायक और योगी सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह को मैदान में उतारा है। यादव और शाक्य बिरादरियों की बड़ी आबादी वाली इस सीट पर बसपा ने पूर्व विधायक शिव प्रसाद यादव को मैदान में उतारा है।
बदायूं लोकसभा सीट पर भी यादव परिवार की साख का परीक्षा होगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले यहां चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया था। धर्मेन्द्र 2009 व 2014 में बदायूं से बतौर सपा प्रत्याशी सांसद चुने गए थे लेकिन 2019 में चुनाव हार गए थे। अखिलेश ने इस बार फिर उन्हें यहां से टिकट थमाया लेकिन बाद में उन्हें आजमगढ़ से प्रत्याशी बनाकर चाचा शिवपाल सिंह यादव को बदायूं के चुनाव मैदान में उतार दिया। बाद में स्थानीय इकाई की मांग पर अखिलेश ने चाचा शिवपाल की जगह उनके पुत्र आदित्य यादव को प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा ने यहां वर्तमान सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय सिंह शाक्य को उम्मीवार बनाया है तो बसपा ने मुस्लिम खां पर भरोसा जताया है। भाजपा यहां अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए जोर लगाएगी।
आंवला लोकसभा सीट पर भाजपा सांसद और प्रत्याशी धर्मेन्द्र कश्यप जीत की तिकड़ी लगाने के इरादे से फिर मैदान में हैं। उनकी राह रोकने के लिए समाजवादी पार्टी ने नीरज मौर्य को मैदान में उतारा है जो शाहजहांपुर के जलालाबाद विधानसभा क्षेत्र से 2007 व 2012 में बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे। बसपा ने इस सीट पर सपा छोड़कर आए आंवला नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष सैयद आबिद अली को प्रत्याशी बनाया है। यहां पर भी सभी दल जातियों के जरिये अपने समीकरण बैठाने में लगे हैं। वैसे आंवला सीट पर ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो चार जून को चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।
हाथरस लोकसभा सीट बाहरी प्रत्याशियों को सुहाती रही है। भाजपा ने यहां अपने सांसद राजवीर सिंह दिलेर का टिकट काटकर अलीगढ़ की खैर सीट के विधायक और योगी सरकार में राजस्व राज्य मंत्री अनूप वाल्मीकि को प्रत्याशी बनाया है। उन पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखने की जिम्मेदारी होगी। वहीं बसपा ने साफ्टवेयर इंजीनियर हेमबाबू धनगर और सपा ने जसवीर वाल्मीकि को प्रत्याशी घोषित किया है। सपा और बसपा प्रत्याशी सहारनपुर के निवासी हैं। भाजपा को अपनी केंद्रीय योजनाओं और मोदी-योगी पर भरोसा है तो विपक्ष को अपने समीकरणों का। देखना होगा कि इस सीट पर फिर कमल खिलता है या सपा-बसपा अपना खाता खोल पाने में कामयाब होती हैं।
एटा लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र और वर्तमान भाजपा सांसद राजवीर सिंह यहां बीजेपी की तरफ से हैट्रिक लगाने के इरादे से फिर चुनाव मैदान में हैं। राजवीर लोध बिरादरी से हैं तो सपा ने शाक्य बिरादरी के देवेश शाक्य पर भरोसा जताया है। देवेश शाक्य औरैया से दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। बसपा ने कांग्रेस छोड़कर आए पेशे से वकील मोहम्मद इरफान को उम्मीदवार बनाकर चुनाव का तीसरा कोण उभारने की कोशिश की है। बसपा अभी तक एटा सीट नहीं जीत सकी है। यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के प्रभाव वाला माना जाता है जिसे बरकरार रखने में राजवीर सिंह भी सफल रहे हैं। लोध मतदाता इसकी धुरी हैं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी शाक्य बिरादरी को साथ लेते हुए मुस्लिमों के साथ अपना समीकरण इस चुनाव में देख रही है।
फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर फिलहाल दिलचस्प मुकाबले के आसार हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में 4.95 लाख वोटों से जीतने वाले जाट बिरादरी के भाजपा सांसद राजकुमार चाहर इस बार फिर यहां कमल खिलाने के इरादे से मैदान में हैं। बसपा ने चुनावी गणित को ध्यान में रखते हुए ब्राह्मण प्रत्याशी राम निवास शर्मा पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने ठाकुर बिरादरी के रामनाथ सिकरवार को उतारा है। फतेहपुर सीकरी के भाजपा विधायक चौधरी बाबू लाल के पुत्र रामेश्वर चौधरी ने निर्दल उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरकर यहां होने वाली लड़ाई को रोमांचक बना दिया है। रामेश्वर चौधरी भी जाट बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं।

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