बुन्देलखण्ड विवि का दर्जा स्ववित्त से सरकारी हो: भानु सहाय

बुन्देलखण्ड विवि का दर्जा स्ववित्त से सरकारी हो: भानु सहाय

मुकेश तिवारी
झांसी। बुन्देलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानू सहाय के नेतृत्व में मुख्यमंत्री एवं सभापति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से दिया गया। ज्ञापन में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के अन्तर्गत आने वाला अखण्ड बुन्देलखण्ड क्षेत्र भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार एवं मध्य प्रदेश सरकार के कागजों में पिछड़ा क्षेत्र दर्ज कागजात है।

भारत की आजादी के 75 साल बाद भी देश का हृदय भाग बुन्देलखण्ड समग्र विकास की धारा से कटा हुआ है। सरकारें अपनी पीठ थपथपाने के लिये कैसे भी आंकड़ें प्रस्तुत कर दे परंतु सत्य यह है कि कुछ बाहरी भाग को छोड़कर आज भी बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

प्राईमरी से उच्च शिक्षा में प्राइवेट विद्यालयों का ही बोलबाला है जिनकी फीस बुन्देलियों के लिये आर्थिक तंगी के चलते भर पाना मुश्किल है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में उच्च शिक्षा की प्राप्त के लिये बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय है, ये भी स्ववित्त पोषित है।

प्रदेश में बनी सभी राजनैतिक दलों की सरकार को बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पीड़ा का अहसास रहा, लेकिन किसी ने भी कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया जिसमें पिछड़े क्षेत्र बुन्देलखण्ड के विद्यार्थियों को सस्ती एवं अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके, ताकि वे भी देश एवं प्रदेश में प्रदेश स्तर की परीक्षाओं को पास कर नौकरी प्राप्त कर सकें।

चूंकि विश्वविद्यालय को उत्तर प्रदेश शासन से किसी भी मद में कोई भी राशि अनुदान में प्राप्त नही होती है और उक्त विश्वविद्यालय में 8 विभाग नियमित है परंतु उक्त नियमित विभागों में भी कोई धनराशि शासन से किसी मद जैसे वेतन आदि में प्राप्त नही होती है।

इस कारण एक बड़ी धनराशि वेतन, पेंशन पर ही व्यय हो जाती है। इसके अतिरिक्त ज्यादातर कोर्स स्व वित्त पोषित योजना के अंतर्गत लगभग 25 विभाग संचालित किए जा रहे है, इसलिए विश्वविद्यालय को अपनी फीस आदि में वृद्वि करनी पड़ती है।

विगत 2 या 3 वर्षों में समस्त कोर्सेज में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक वृद्वि की गई है। अब ऐसे में बुंदेलखंड जैसे पिछडे क्षेत्र के गरीब अपने बच्चों को कैसे उच्च शिक्षा प्रदान करेंगे, चूंकि शासन से विश्विद्यालय को कोई अनुदान प्राप्त होता है, इसलिए विश्विद्यालय धन का दुरुपयोग भी अपने अनुसार करता रहता है। अभी कुछ दिन पूर्व समाचार पत्र से जानकारी प्राप्त हुई थी कि विश्विद्यालय 40 करोड़ की लागत से नया प्रशासनिक भवन बनाने जा रहा है।

इतना ही नहीं, पुराने भवन पर साज सज्जा पर ही अभी करोड़ों की धनराशि व्यय की गई हैं। पूर्व भवन अभी लगभग 40 वर्ष ही पुराना है। ऐसे में धन की कमी दर्षाते हुए बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र में छात्रों की फीस 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ा दी जाती है, दूसरी तरफ धन का ऐसा दुर्पयोग समझ से परे है।

अनुरोध गया कि विश्वविद्यालय में ऐसे धन के दुर्पयोग पर भी रोक लगाए और फीस में वृद्वि मनमाने स्तर पर विश्विद्यालय न कर सके जिससे बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र के गरीब छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। उत्तर प्रदेश के अन्य लोगों से बुन्देलखण्ड क्षेत्र की तुलना करना न्यायसंगत नहीं हैं। यहां शाम की रोटी कैसे पके इसके लिये ही मेहनत की जाती है।

अच्छी शिक्षा एवं बेहतर स्वास्थ्य लाभ की सोचना भी दुष्कर है। मेडिकल कॉलेजों एवं सरकारी चिकित्सालयों में आधे से ज्यादा चिकित्सीय पद खाली पड़े हैं। प्रदेश सरकार को सर्वप्रथम यही कार्य करना चाहिये कि बुन्देलखण्ड विवि को स्ववित्त पोषित स्कीम से निकालकर 100 सरकारी अनुदान दिया जाना चाहिये जिससे अति पिछड़े बुन्देलखण्ड के विद्यार्थी भी उच्च एवं सस्ती शिक्षा प्राप्त कर कम्पटीशन की तैयारी में भाग ले सके एवं अपना इलाज मेडिकल कॉलेजों व सरकारी अस्पतालों में सस्ता एवं अच्छा करा सके।

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