इक बात मन में है, जो कह दूँ तो क्या हो?
इक बात मन में है, जो कह दूँ तो क्या हो ?
गुल क्यूँ दहन में है, जो कह दूँ तो क्या हो ?
यारे-विसाल में वो बात ही नहीं जो
दर्दे-चुभन में है, जो कह दूँ तो क्या हो ?
तू लाख ज़ज़्ब कर ले, पढ़ती हूँ तेरा माथा
क्या तिरे ज़ेहन में है, जो कह दूँ तो क्या हो ?
अपने सनम का काँधा, ख़्वाबों में लिपटी नींदें
खाक़-ए-वतन में है, जो कह दूँ तो क्या हो ?
रातें तमाम गुज़री, तेरे इश्क़ को बचाते
अस्मत रहन में है, जो कह दूँ तो क्या हो ?
(शुचि मिश्रा)
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