आधुनिकता
उदास है धरती मा,
जाने कैसा हो गया है जनजीवन।
स्वार्थी मानव हो चला
अस्त व्यस्त है वन उपवन
हर क्षण कट रहे जंगल खेत—खलिहान,
अपना बसेरा बनाते बनाते,
छीन लिया बेजुबानो का आवास
क्षण क्षण घिर रहा प्रदूषण का साया,
किन्तु धरती माँ की उदासी को कोई न जान पाया
धीमी हो रही है गति और खतरा लगातार बढ़ रहा।
ए मानव संभल जा, आधुनिकता के नाम पर तू विनाश की ओर है बढ़ रहा।
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर—उत्तराखण्ड