मालिक.. बहुतै परेशान बा..!
मालिक.. बहुतै परेशान बा..!
बीत गयल सब बियाह-बरात…
अब चौथी भेजै में… मालिक के…
अटकल जान-परान बा….
पाहुर-झापी त सब तैयार बा,
आउर कपड़ा-लत्ता, सूट-बूट के,
सब होय गयल बाजार बा….
चौथी जाए खातिर…
तय होय गयल… ट्रैक्टर-कार बा…
पर एहर देखा त… छान तोड़उले..
गरमायल बाटी मलकिन… कि…
लडुआ त सब बेकार बा…
हलवाई ससुरा ठीक नही बा,
ना तनिको ही होशियार बा…
ओहर देखा त… चौथी पर…
जाए खातिर बहुतै लोग तैयार बा,
छँटनी करब भईल बा आफ़त…!
दुखै लगल कपार बा….
केके छाँटी… केके रोकीं….!
निर्णय कइल बहुत बेकार बा…
केहू आपन रोल सुनावे.. केहू कहे,
मेहनत मोर बहुत अनमोल बा…
केहू बरतिहन के छछन्द सुनावे…
एहि बदे… बदला लेवे के तैयार बा
भले बात भईल बा दस लोगन के
पर चौथी बरे… सौ जन तैयार बा..
खान-पान में कुल नखरा कइलन,
पानी पी-पी गरियवलेन सारे…
एहि चौथी में हमनों देखल जाई..!
उनकर कइसन सत्कार बा….
आउर सब त छोड़ा भईया,
चौथी में अब त बिपत भईल हौ…
लइकनियों के जाए क विचार बा,
बहिनी के सुख-दुख देखब हमनो,
देखब कइसन देश-जवार बा….!
देखब… जिजवा चतुर हवे… या..
बाउर-चोर-गँवार बा…
जबरी बाइक लेहलेन ससुरे,
देखब तेल भरावे खातिर…!
कइसन ओनकर औकात बा…
लगे लगल बा अब त अइसन..
जैसे… ई चौथ नहीं….!
अपनन में देखी-देखा के बात बा..
कुल रिश्ता बन गईल बा.. लेकिन..
भईया.. अइसन बाटे दुनिया..देखा
अबहीं दुइनौ एक-दूजे के…
तउले के तैयार बा…!
कुल बातिन के सोच समझि के,
बुढ़वन-बच्चन पर भयल वार बा
रोकि लिहल गईनै उहै सभे
जेकर चौथी में जाए क…
सच में अधिकार बा…!
घरवै में सब भिड़ल बा भईया,
सबके अइसन लागत बा… कि…
केहू न मोर पुछवार बा…
परेशान अब मालिक सोचै…!
कइसव इज़्ज़त बचै रे भईया,
अब त एहू के बड़ा सवाल बा…
कुल मिला के देखा भईया….
मालिक… बहुतै परेशान बा…!
मालिक… बहुतै परेशान बा…!
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज
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