वेद पुरान बसै हिय में जेहि तैतिस कोटि करैं रखवारी।
ब्रह्म निरूपन धर्म कहै नित कीरति गान करै श्रुति चारी।
सृष्टि समेत महेश जहां जड़ चेतन देह अदेहन धारी।
तीरथ सिन्धु समेत सबै भुवि पालक होत सदा बलिहारी।
लोक परलोक के विधान चलै आयसु लै
सोइ जगदीश ईश रक्षति प्रदीप को।
भक्ति ज्ञान जोग साधना भी रंच मात्र नाहिं
एक भाव दास्य प्रभु ताहीं में प्रतीति को।
वर्ण शब्द अर्थ छन्द कविता का भान नाहिं
एक रस भक्ति दूजो करूण की रीति को।
मातु शारदा को नेह हिय गौरीसुत बसै
वन्दना महेश हेतु निज कविताई को।।
मोह के बन्धन रीति सदा निज स्वार्थ में देव अदेव रहे है।
कारन कारज धर्म लिये सुर मानुष की गति कौन कहे है।
नारद देवॠषि प्रभु वाहन ज्ञान निधान को मोह भये है।
पांवर जीव प्रदीप गिरा निशि वासर पातक पुञ्ज नये हैं।
व्यास ॠषि ग्रन्थ लिखि लीन्हो हैं परमपद
बाल्मिकि तुलसी ने राम नाम गुन गाये हैं।
मीरा सूर रसखान दास्य भक्ति नन्दन को
सगुन साकार राम कृष्ण सम ध्याये हैं।
निज आस भक्ति प्रभु प्रीति में प्रतीति लिये
कलि में अधम जीव प्रभु पद पाये हैं।
ज्ञान बुद्धि हीन मति भ्रमित प्रदीप लिये
शुचि ग्रन्थ भाव प्रभु शरण में आये है।
चरित अपार प्रभु अगम जलधि सम
देव मुनि मनुज न संत पाये पार हैं।
लीला है विशद जासु चरित अगम पुनि
निरखि चरित सिन्धु जीव गये हार हैं।
माघ मास शुभ दिन सविता मकर राशि
योग तिथि नखत सहित शुभ वार है।
जीवन रहस्य नाम ग्रन्थ प्रभु पद धरि
कृपा हेतु वन्दित चरन बार बार है।
रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
शिक्षक/पत्रकार
सुइथाकला-जौनपुर
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