बमबारी के दौरान हुये धुएं के बीच से निकली जिन्दगी और घर पहुंच गये अरविन्द

बमबारी के दौरान हुये धुएं के बीच से निकली जिन्दगी और घर पहुंच गये अरविन्द

5 दिनों तक लगातार नहीं मिल सका भोजन, फिर भी जारी रहा सफर
……..हमार भैया अच्छे से आय गये, अब हमैं सुकून मिला
राजेश श्रीवास्तव
अयोध्या। हमार भैया अच्छे से आय गए, अब हमैं सुकून मिला। जब तक नाहीं पहुंचा रहे जियरा बहुत घबरात रहा। चार दिन लगातार भइया से बात नाय होइ पाइस तौ करेजवा में लूकी लागि रही। यह दर्द अरविंद यादव की मां कौशिल्या देवी ने आंसू पोंछते हुए बयां किए।Why did the responsible officers of the Information Department become biased?

मिल्कीपुर के भिटारी गांव निवासी अरविंद कुमार यादव वर्ष 2021 के मार्च माह में यूक्रेन गये। वहां वीएन कराजिन खार्किव नेशनल यूनिवर्सिटी से वह एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे। प्रथम वर्ष कंप्लीट हो चुका है। द्वितीय वर्ष में तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा अप्रैल माह में होने की संभावना थी। इससे पहले वहां 24 फरवरी से युद्ध शुरू हो गया। मात्र दो दिन पहले 22 फरवरी को भारतीय दूतावास की ओर से युद्ध शुरू होने की सूचना देते हुए सभी छात्रों को अपने-अपने घर जाने के लिए कहा गया। इतना सुनते ही छात्रों में हड़बड़ाहट मच गई। सरकार ने टिकट के लिए चार्टेड फ्लाइट की व्यवस्था तो किया लेकिन किराया पहले से 3 गुना कर दिया।

पहले 35 हजार में दोनों तरफ का किराया होता था। लेकिन इस बीच लगातार फ्लाइट का किराया बढ़ाया गया। पहली बार 60 हजार तो दूसरी बार 10 हजार की वृद्धि करते हुए 70 हजार कर दिया गया। इतना ही नहीं, शीट फुल होते देख 90 हजार तक बढ़ा दिया गया। फिर छात्रों ने सस्ती फ्लाइट पकड़ने की कोशिश की। कोई व्यवस्था न होते देख अरविंद अपनी जान को जोखिम में डाल अपने साथियों के साथ जाकर बंकर में छिप गए। यहां 5 दिनों तक बिना भोजन के ही भूखे पेट गुजारना पड़ा। अरविंद का कहना है कि यूक्रेन के लोग एक दो बार थोड़ा ब्रेड दे देते थे। इंडिया के कुछ लोगों ने भी कुछ मदद की। उनका कहना है कि कोई मदद न मिलते देख 5 दिन बाद वह पैदल ही अपने 10-15 साथियों के साथ रेलवे स्टेशन बोगजाल के लिए निकल पड़े जो करीब 10 किलोमीटर था।

एक किलोमीटर भी नहीं पहुंचे कि बमबारी शुरू हो गई। फिर हर जगह धुंवा-धुंवा हो गया। फिर किसी तरह भागते-भागते बोगजाल स्टेशन पहुंचा। बोगजाल से एक मार्च की सुबह नौ बजे लबीब के लिए ट्रेन पर बैठे। भूखे पेट ही 24 घण्टे का सफर तय कर लबीब पहुंचने के बाद यहां से अपने निजी व्यवस्था से कार बुक कर पोलैंड बार्डर पहुंचा। यहां करीब 10 घण्टे जांच प्रक्रिया पूरी होने में लग गए। इसके बाद सरकारी सेवा के तहत बस से हम सभी को होटल में लाकर भोजन कराया गया। दो मार्च की रात पोलैंड में ही गुजारना पड़ा। तीन मार्च की शाम छह बजे पोलैंड की फ्लाइट से दिल्ली लाया गया। बुखार होने से दिल्ली में ही अपने मामा के घर रुकना पड़ा। पांच मार्च को दिल्ली-फैजाबाद ट्रेन से अपने गांव भिटारी के लिए निकला। 6 मार्च को सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर कैंट स्टेशन पहुंचा। वहां मौजूद बड़े भाई गोविंद यादव व रवींद्र यादव के साथ पूर्व मंत्री आनंदसेन यादव ने रिसीव किया।

 

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