कृपाशंकर को कितनी चुनौती दे पायेंगे कुशवाहा?

कृपाशंकर को कितनी चुनौती दे पायेंगे कुशवाहा?

—जौनपुर लोकसभा सीट—

प्रमोद जायसवाल
पूर्वांचल की चर्चित सीटों में शुमार जौनपुर लोकसभा सीट सुर्खियों में है। यहां चुनावी समर के योद्धाओं के नाम फाइनल हो चुके हैं। चुनाव चिन्ह भी आवंटित हो चुके हैं। पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह के मैदान से हटने के बाद मुख्य मुकाबला भाजपा और इंडी गठबंधन के बीच नजर आ रहा है। अब यही देखना है कि भाजपा उम्मीदवार कृपाशंकर सिंह को सपा प्रत्याशी बाबू सिंह कुशवाहा कितनी चुनौती पेश कर पाते हैं?
जातीय समीकरण के लिहाज से जौनपुर लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक ढाई लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। राजपूत वोटर करीब 2 लाख, यादव, मुस्लिम तथा अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या भी सवा दो लाख के करीब है। मुद्दों को छोड़कर यहां जाति की ही बयार बहती रही है। पिछले 4 चुनावों पर नजर डालें तो बीजेपी ने दो बार जीत दर्ज की थी।
वर्ष 2009 में धनंजय सिंह तथा 2019 में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी श्याम सिंह यादव इस क्षेत्र से लोकसभा में पहुंचे थे। इस बार भाजपा ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्यमंत्री कृपाशंकर सिंह को मैदान में उतारा है जबकि सपा ने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को उम्मीदवार घोषित किया है। बसपा ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह को प्रत्याशी बनाया था लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर निवर्तमान सांसद श्याम सिंह यादव को दे दिया। श्रीकला सिंह ने करीब 3 हफ्ते क्षेत्र में जमकर प्रचार किया, उन्हें जनता का अपार समर्थन भी मिल रहा था। यह देखते हुए मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा था लेकिन उनके मैदान से हटने के बाद अब स्थिति बदल गई। भाजपा को मोदी मैजिक, पार्टी व सरकार की उपलब्धियों के साथ ब्राह्मण, राजपूत सहित अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों का सहारा है। वहीं सपा को यादव, मुस्लिम तथा मौर्य समाज के मतदाताओं पर भरोसा है। बसपा अपने मुख्य वोट बैंक अनुसूचित जाति के अलावा यादव बिरादरी के मतों में सेंध लगाने की फिराक में है। वैसे तो यहां कुल 14 प्रत्याशी जोर आजमाइश कर रहे हैं लेकिन लड़ाई में सिर्फ तीन ही दिखाई दे रहे हैं। तीनों उम्मीदवार जोर-शोर से मतदाताओं से सम्पर्क में जुटे हैं। उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं।

धनंजय फैक्टर रहेगा प्रभावी
श्रीकला सिंह का टिकट काटने के बाद बसपा ने बयान जारी किया कि उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। धनंजय सिंह ने इसे झूठा करार देते हुए मीडिया को बताया कि उनके साथ धोखा करते हुए टिकट काटा गया। उन्होंने दावे के साथ कहा कि क्षेत्र में मेरी मजबूत पकड़ है। जीतेगा वही जिसे हम चाहेंगे। सर्वविदित है कि धनंजय सिंह का बड़ा जनाधार है। टिकट कटने से उनके समर्थकों में घोर निराशा और आक्रोश है। पार्टी पदाधिकारियों में भी नाराजगी है। इसका खामियाजा बसपा को भुगतना तय माना जा रहा है। अगर उन्होंने खुले तौर पर भाजपा या सपा को समर्थन दे दिया तो उस प्रत्याशी की स्थिति और मजबूत हो जाएगी।

स्थानीय व बाहरी मुद्दा भी होगा प्रभावी
संसदीय चुनाव में वैसे तो वोटर सांसद नहीं सरकार को चुनते हैं, मगर प्रत्याशी और जातिगत समीकरण भी प्रभावी रहता है। लोग अपेक्षा करते हैं कि उनका प्रतिनिधि हर सुख-दुख में शरीक हो। इस चुनाव में भी प्रत्याशियों के स्थानीय व बाहरी होने का मुद्दा लोगों की जुबान पर है। भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह और बसपा उम्मीदवार श्याम सिंह यादव इसी जनपद के निवासी हैं, मगर समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे बाबू सिंह कुशवाहा बांदा जनपद के रहने वाले हैं। यादव, मुस्लिम के साथ मौर्य बिरादरी के वोटरों को साधने के चक्कर में उन्हें साइकिल पर सवार किया गया है।

सुस्त हो गयी है हाथी की चाल
बसपा ने जब श्रीकला सिंह को टिकट दिया था तो कार्यकर्ताओं में बड़ा उत्साह था। धनंजय सिंह के समर्थकों के साथ मिलकर क्षेत्र में पार्टी के पक्ष में फिजा बना रहे थे और भाजपा प्रत्याशी को कड़ी चुनौती पेश कर रहे थे। प्रत्याशी बदलते ही बसपा कार्यकर्ता हतोत्साहित हो गए और हाथी की चाल सुस्त पड़ गई। कुछ पदाधिकारियों ने तो पार्टी से नाता भी तोड़ लिया।

विधानसभा के लिहाज से फिलहाल भाजपा बीस
जौनपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की कुल 5 सीटें आती हैं जिसमें 3 में भाजपा गठबंधन तथा 2 में सपा का प्रतिनिधित्व है। जौनपुर, बदलापुर में भाजपा के विधायक हैं जबकि शाहगंज में गठबंधन के प्रत्याशी रमेश सिंह ने जीत दर्ज की थी। मल्हनी और मुंगराबादशाहपुर में सपा के विधायक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

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