न रोको मेरे शब्दों के बहाव को
मुझे मेरी बात बेझिझक बेबाक कहने दो
बहुत प्यासे बैठे हैं अपनी भावनायें छुपाए
उनके दिलों में सुकून अहसास भरने दो
मैं लेखक हूँ मुझे स्वतंत्र ही रहने दो
मेरी लेखनी धरोहर है देश समाज के लिये
इनको झूठ, भ्रम, संदेह से दूर रहने दो
निष्पक्ष तटस्थ वर्णन करती रहूं आजीवन इसलिए
मुझे मेरे दिल दिमाग सोच समझ की बात कहने दो
मैं लेखक हूँ मुझे स्वतंत्र ही रहने दो
झूठ से धुंधला जाता है सच इसलिए
दिलों में भ्रम का कोहरा न उतरने दो
किसी की झूठी तारीफें करने से लज्जित हो जाते हैं शब्द
मुझे बेपरवाह मनमौजी ही बहने दो
मैं लेखक हूँ मुझे स्वतंत्र ही रहने दो
मेरा नजरिया अलग हो सकता है
मुझे मेरे तरीके से सब देखने समझने लिखने दो
अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग एहसास हैं मेरे शब्द
मुझे मेरे शब्दों के संग ही ढहने दो
मैं लेखक हूँ मुझे स्वतंत्र ही रहने दो
लेखिका
डॉ. सरिता चंद्रा (छ.ग.)
आधुनिक तकनीक से करायें प्रचार, बिजनेस बढ़ाने पर करें विचार हमारे न्यूज पोर्टल पर करायें सस्ते दर पर प्रचार प्रसार।