सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी
सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी
14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर खास
भाषा और राष्ट्रीय एकता का गहरा संबंध है। भाषा के माध्यम से ही राष्ट्रीय एकता स्थापित की जा सकती है, क्योंकि भाषा ही विचारों के आदान-प्रदान का पोषक तत्व बनती है। भारत में हर प्रांत में बोली जाने वाली भाषाएं भिन्न-भिन्न होने पर भी आचार-विचार में एकता होने के कारण राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत सहायककारी और शक्तिशाली पोषक रूप बन गई हैं, खासकर हिंदी भाषा, जो राष्ट्रीयता का एक प्रमुख घटक तत्व है। भारत एक बहुभाषी देश है। सन 1961 की जनगणना के अनुसार इस देश में मातृभाषा के रूप में 1852 भाषाएं बोली जाती हैं। यह भाषाएं किसी एक परिवार की ना होकर विभिन्न भाषा परिवारों से सम्बद्ध हैं।
यह हैं—- आर्य कुल, द्रविड़ कुल, आस्ट्रिक कुल, भाटे-बर्मी कुल आदि इतनी बड़ी संख्या में बोली और समझी जाने वाली मातृभाषाओं के बावजूद संप्रेषण व्यवस्था के ना टूटने का एक प्रमुख कारण राजभाषा और संपर्क भाषा हिंदी का महत्व है। बहुभाषी देश भारत अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के लिए अगर एक भाषा का प्रयोग करता है तो इन आवश्यकताओं से ऊपर क्षेत्रीय स्तर की जरूरतों के लिए एक दूसरी भाषा हिंदी का प्रयोग करता है।. भारतीय समाज की यह विशेषता रही है कि वह अपने पारिवारिक जीवन मूल्यों को व्यक्त करने के लिए अपनी मातृभाषा का प्रयोग करता परंतु भारतीय समाज की यह विशेषता रही है कि वह अपने पारिवारिक जीवन मूल्यों को व्यक्त करने के लिए अपनी मातृभाषा का प्रयोग करता है पर व्यापक सामाजिक संदर्भों के लिए यदि आवश्यकता पड़ती है तो दूसरी भाषा को भी अपनाने में संकोच नहीं करता। हम सभी जानते हैं कि दुनिया के करीब-करीब हर एक देश की एक ही राष्ट्रभाषा है और पूरा देश उसी भाषा का अनुसरण करता है लेकिन भारत में स्थितियां बिल्कुल अलग हैं।. यहां हर राज्य की अपनी एक अलग भाषा है और वह उसे ही श्रेष्ठ मानता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।. यही कारण है कि एक नारा दिया गया- ‘‘एक राष्ट्र एक भाषा’’।
भाषा किसी भी राष्ट्र के लिए आत्म सम्मान और गौरव का प्रतीक होती है। देश का संविधान सभी भाषाओं को एक समान मानता है। कोई भी व्यक्ति एक से अधिक भाषा सीखता है तो यह उसके लिए बड़े गौरव की बात होती है। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना माना गया है। संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है, इसे आर्य भाषा या देव भाषा भी कहा जाता है और हिन्दी का जन्म संस्कृत से ही हुआ है। संस्कृत से होते हुए पालि, प्राकृत, अपभ्रंस और फिर हिन्दी का विकास हुआ तथा हिन्दी से हिन्दी खड़ी बोली जन्मी। इस तरह हिन्दी के विकास की यात्रा बड़ी अनोखी है। यही हिन्दी भारत के हृदय की भाषा बनी। भारतेन्दु हरिशचंद्र ने सब उन्नति के मूल को निज भाषा की उन्नति में समाहित माना था।
पिछले सौ सालों में हिन्दी खड़ी बोली का विभिन्न विधाओं के माध्यम से बड़ी तेजी से विकास हुआ। धीरे-धीरे हिन्दी पूरे विश्व में अपना स्थान बनाती जा रही है। वह दिन दूर नहीं है जब हिन्दी विश्व की भाषाओं में द्वितीय स्थान पर होगी। जार्ज ग्रियर्सन कहते हैं “हिन्दी बोलचाल की महाभाषा है।” भाषायी सर्वेक्षण यह बताता है कि दुनिया की आबादी के 18 प्रतिशत लोग इसे समझते हैं। इस प्रकार हिन्दी भाषा का विकास बड़ी तेजी से हुआ और यह धीरे-धीरे रोजगार की साधन बनती जा रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दी भविष्य की भाषा है। सारे डिजिटल माध्यमों तक हिन्दी की पहुँच बढ़ी है। यही नहीं, विकीपीडिया ने भी हिन्दी के महत्व को समझते हुए बहुत सी सामग्री का सॉफ्टवेअर अनुवाद हिन्दी में देना शुरू कर दिया है। मैं अपनी बात प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ सुनीत कुमार चटर्जी के कथन से समाप्त करना चाहूंगी। वह कहते हैं- ‘हिंदी हमारे भाषा विषयक प्रकाश का एक महत्तम साधन तथा भारतीय एकता एवं राष्ट्रीयता का प्रतीक रूप है.वास्तव में हिंदी ही भारत की भाषाओं का प्रतिनिधित्व कर सकती है।’
प्रो. निर्मला एस. मौर्य
कुलपति वीर बहादुर सिंह पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय
जौनपुर (उ. प्र.)
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