सुख, समृद्धि, शान्ति की उड़ाएं पतंगे!
सुख, समृद्धि, शान्ति की उड़ाएं पतंगे!
खुले आसमां में उड़ाएँ पतंगे,
सुख, समृद्धि, शान्ति की उड़ाएँ पतंगे।
फसलें सजी हैं किसानों की देखो,
चलो हवा से मिलके उड़ाएँ पतंगें।
मकर संक्रांति का फिर आया उत्सव,
असत्य पे सत्य की उड़ाएँ पतंगे।
तस्वीर दिल की इंद्रधनुषी बनाएँ,
अरमानों के नभ में उड़ाएँ पतंगे।
दक्षिणायन से उत्तरायण हुआ सूरज,
नीचे से ऊपर को उड़ाएँ पतंगे।
तमोगुण से सतोगुण की ओर बढ़ें,
करें दान पहले, तब उड़ाएँ पतंगे।
बेखौफ होकर गगन को छू आएँ,
उसके चौबारे में उड़ाएँ पतंगे।
नहीं कुछ फर्क है जिन्दगी-पतंग में,
उलझें न धागे वो उड़ाएँ पतंगे।
बिछाई है जाल महंगाई नभ तक,
हिरासें न घर में, उड़ाएँ पतंगे।
कागज का टुकड़ा इसे न समझो,
चलकर फलक तक उड़ाएँ पतंगे।
दरीचे से बाहर निकलेगी वो भी,
चलो आशिकी में उड़ाएँ पतंगे।
फना होना तय है हमारी ये साँसें,
खुले उसके दिल में उड़ाएँ पतंगे।
खुशबू से भर गई सारी ये वादी,
ऐसी बहार में उड़ाएँ पतंगे।
दवा के बदले वो भले दे जहर,
बला हम उठाकर उड़ाएँ पतंगे।
रामकेश एम. यादव
(कवि, साहित्यकार), मुम्बई
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