खतरा: धान में दिखाई दे रहे फाल्स स्मट रोग के लक्षण

खतरा: धान में दिखाई दे रहे फाल्स स्मट रोग के लक्षण

देवी प्रसाद शर्मा
आजमगढ़। धान की फसल अब पक रही है इस समय धान में कंडुआ, लेडुआ, फाल्स स्मट रोग का प्रकोप हो रहा है। इससे धान उपज में 25 से 80 प्रतिशत की कमी आती है। अधिक प्रकोप के समय यह रोग बहुत घातक होता है तथा धान की गुणवत्ता के साथ-साथ उपज को भी भारी नुकसान पहुंचता है। किसान भाई शुरूआत में ही इसका नियंत्रण कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं धान की बाली पीले फलदार पिंडों के समूह में परिवर्तित हो जाती है, प्रारम्भ में कुछ ही पौंधो पर इसका प्रकोप होता है परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता है हवा, कीड़ो एवं मानवीय गतविधियों से एक पौंधो से दुसरे पौंधो में फैलता है फूलों के हिस्सों को घेरने वाले मखमली बीजाणुओं की वृद्धि होती है। संक्रमित अनाज में मखमली दिखने वाले हरे रंग के स्मट बॉल्स दिखाई देते हैं। स्मट बॉल पहले छोटे दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे 1 सेमी के आकार तक बढ़ते हैं पुष्पगुच्छ में केवल कुछ दाने ही आमतौर पर संक्रमित होते हैं और बाकी सामान्य होते हैं। जैसे-जैसे कवक की वृद्धि तेज होती है, स्मट बॉल फट जाती है और नारंगी और फिर बाद में पीली हो जाती है। स्थितियाँ जो रोग के विकास को बढ़ावा देती हैं, वर्षा और उच्च आर्द्रता की उपस्थिति, उच्च नाइट्रोजन सामग्री वाली मिट्टी की उपस्थिति, पौधे से पौधे तक बीजाणुओं के प्रसार के लिए हवा की उपस्थिति, चावल की फसल के फूलने की अवस्था। प्रबंधन रणनीतियाँ इस समय किसान भाई निम्न रणनीतियाँ के द्वारा संक्रमण को कम कर सकते है जिसे संक्रमित पौधे के मलबे को हटाना और उसका उचित निपटान करना। बीमारी को कम करने के लिए संक्रमित पौधों से भूसे और ठूंठ को नष्ट करें। उन किस्मों का उपयोग करें जो भारत में रोग के प्रति प्रतिरोधी या सहनशील पाई जाती हैं। जब पौधे गीले हों तो खेत में गतिविधियों से बचें। देर से बोई गई फसल की तुलना में जल्दी बोई गई फसल में कीचड़ के गोले कम होते हैं। कटाई के समय रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए ताकि स्क्लेरोटिया (बीमारी का कारक) खेत में न गिरे। इससे अगली फसल के लिए प्राथमिक इनोकुलम कम हो जाएगा। फंगल (फफूंद) संक्रमण को रोकने के लिए बूट लीफ (जब कल्ले का विकाश हो) और दूधिया अवस्था (जब कल्ले में दाने बने) में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम लीटर या प्रोपिकोनाजोल 1.0 मिली/ लीटर का छिड़काव अधिक उपयोगी होगा। कार्बेन्डाजिम 2.0 ग्राम/किलो बीज से बीजोपचार करें। कल्ले फूटने और फूल आने से पहले की अवस्था में, हेक्साकोनाजोल 1 मि.ली./लीटर या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम लीटर की दर से छिड़काव करें। यह जानकारी देते हुए डॉक्टर महेंद्र प्रसाद गौतम जो वैज्ञानिक फसल सुरक्षा कृषि विज्ञान केंद्र लेदौरा ने कहा कि अगर किसान फसल को बचाने के लिए दवा का इस्तेमाल करते हैं तो वह इसमें सफल होते हैं तो निश्चित रूप से फसल की उत्पादन क्षमता अपने आप बढ़ेगी।

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