वफाओं से भिगो दो!
किसी की मुफलिसी पे हँसना ठीक नहीं,
किसी के साथ जफा करना ठीक नहीं।
वफाओं से भिगो दो किसी का तन-बदन,
किसी वृद्धा की पेंशन खाना ठीक नहीं।
चलो ऐसा कि ये जमाना भी साथ चले,
जलता हुआ चराग बुझाना ठीक नहीं।
माँ-बाप होते हैं घने दरख्त की तरह,
उन्हें वृद्धाश्रम में डालना ठीक नहीं।
हद नहीं होती मोहब्बत में लकीर न खींचो,
रोज किसी का दिल दुखाना ठीक नहीं।
प्यार करो तो खुलकर उसका इजहार करो,
रोज उसे ख्वाबों में जगाना ठीक नहीं।
सुरमई शाम चुरा लो यहाँ तक ठीक है,
किसी का उजाला हड़पना ठीक नहीं।
परिन्दों को गले लगाना मुझे याद नहीं,
शजर का शामियाना उजाड़ना ठीक नहीं।
तुरपाई करके कपड़ा पहनों चलेगा,
कीमती वस्त्र से तन झलकाना ठीक नहीं।
अदा है, सुंदरता है आँखें हैं नशीली,
इतना खजाना बाहर दिखाना ठीक नहीं।
बातें करो गाँव के उन खेत-खलिहानों की,
शहर में रहकर गाँव भूलना ठीक नहीं।
नहीं भूलता मेला ईद, दिवाली होली,
पक्की सड़कों पे हरदम चलना ठीक नहीं।
रामकेश एम. यादव
(कवि/साहित्यकार) मुम्बई