यादव फैक्टर बिगाड़ेगा चुनावी समीकरण, जानें क्यों चर्चा में है मल्हानी सीट

यादव फैक्टर बिगाड़ेगा चुनावी समीकरण, जानें क्यों चर्चा में है मल्हानी सीट

जौनपुर। मल्हानी विधानसभा क्षेत्र समाजवादी पार्टी, भाजपा और जद (यू) और उनके हाई-प्रोफाइल उम्मीदवारों के लिए एक हाई-स्टेक, चुनावी युद्ध का मैदान बनकर उभरा है। सपा ने यादव बहुल मल्हानी से मौजूदा विधायक लकी यादव को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा ने अपने पूर्व सांसद केपी सिंह और जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह इस सीट से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मल्हानी विधानसभा में 7 मार्च को मतदान होना है। मल्हानी विधानसभा सीट की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करहल के बाद यह दूसरी सीट है, पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद चुनावी रैली को संबोधित किया है।

पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव ने भी लकी यादव के समर्थन में प्रचार किया है। मुलायम सिंह यादव ने इससे पहले करहल से एक चुनावी रैली को संबोधित किया, जहां से उनके बेटे और सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार केपी सिंह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जौनपुर के सभी उम्मीदवारों के समर्थन में जनसभा की, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी यहां एक-एक चुनावी रैली की। वहीं जदयू प्रमुख ललन सिंह धनंजय सिंह के समर्थन में क्षेत्र में कई जनसभाएं कर चुके हैं।
लकी यादव के लिए यह सीट उनकी पारिवारिक सीट मानी जाती है क्योंकि उनके पिता पारसनाथ यादव यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा पारसनाथ यादव जौनपुर से लोकसभा सांसद और विधायक भी रह चुके हैं। उनके परिवार के भी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ अच्छे संबंध हैं और पारसनाथ यादव मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों की सरकारों में मंत्री हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में पारसनाथ यादव मल्हानी से विधायक बने। उनकी मृत्यु के बाद, सपा ने उपचुनाव में लकी यादव को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने अपने परिवार की विरासत को बनाए रखते हुए मल्हानी सीट जीती।
धनंजय सिंह मल्हानी से इस बार जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर दूसरी बार मैदान में हैं। वह 2002 में पहली बार यहां से निर्दलीय विधायक बने थे। परिसीमन से पहले मल्हानी को रारी कहा जाता था। 2007 में, सिंह ने जद (यू) के टिकट पर सीट जीती थी। उन्होंने 2008 में जद (यू) छोड़ दिया और बसपा में शामिल हो गए। 2009 में वह बसपा के टिकट पर जौनपुर से लोकसभा सदस्य बने और फिर उपचुनाव में उन्होंने अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा के टिकट पर रारी विधानसभा सीट जीत दिलाई। 2012 के विधानसभा चुनाव में सिंह की पत्नी जागृति सिंह ने रारी सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गईं। धनंजय ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन हार गए।
2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मल्हानी सीट से निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। सिंह ने 2020 के उपचुनाव में एक बार फिर निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन फिर हार गए। भाजपा प्रत्याशी के पी सिंह के पिता उमानाथ सिंह कल्याण सिंह सरकार में मंत्री थे। केपी सिंह ने 2014 में पहली बार जौनपुर से लोकसभा चुनाव जीता था। 2019 में, उन्होंने फिर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। अब वह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शैलेंद्र यादव पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। यादव को कभी धनंजय सिंह का करीबी माना जाता था।

 

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